आपने उस सन्देशमें अपने आश्रमवासियोंसे वह दिन खुशीके दिनके रूपमें मनानेका अनुरोध किया, बस इतना ही?
केवल उन्हींसे नहीं बल्कि हर व्यक्तिसे।
आप यह नहीं चाहते थे कि आश्रमके लोग या आगन्तुक हड़ताल करें? लगता है उसमें "दूने उत्साहके साथ" इन शब्दोंका उल्लेख किया गया था और उसका अर्थ कुछ भिन्न लगाया गया था?
हड़तालके सम्बन्धमें तो मेरे वक्तव्यमें कुछ भी नहीं है। लेकिन अगर आप मेरी मानसिक स्थितिके बारेमें जानना चाहते हैं तो कहूँगा कि उस समय में यह नहीं कहना चाहता था कि में हड़ताल चाहता हूँ या नहीं।
क्या आपके सन्देशका ऐसा भी अर्थ लगाया जा सकता था कि लोगोंको हड़ताल करनी है और सड़कों तथा गलियों में शरारतें करते फिरना है?
निश्चय ही इसका ऐसा कोई अर्थ नहीं लगाया जा सकता था।
क्या आपको मालूम है कि इस अंशका आश्रमवासियों अथवा सत्याग्रह सभाने कभी ऐसा अर्थ नहीं लगाया?
मुझसे कहा तो ऐसा ही गया। श्री वल्लभभाई पटेलने मुझसे जोर देकर कहा कि उन्होंने लोगों से स्पष्टतः हड़ताल न करनेको कह दिया था।
अब, आपको ११ तारीखको बम्बई लाया गया?
हाँ।
गाड़ी मैरीन लाइन्स स्टेशनपर रोकी गई?
वह तो संयोगसे वहाँ रुक गई थी, और तब मैंने श्री बाउरिंगसे कहा कि कोलाबा में कोई प्रदर्शन वगैरह न हो इस खयालसे मुझे मैरीन लाइन्स में ही उतर जाना चाहिए।
और बम्बई में किसीको यह मालूम नहीं था कि आप उस गाड़ीसे जा रहे थे?
नहीं।
जब आप मैरीन लाइन्स स्टेशन पहुँचे तो वहाँ कोई आदमी आपसे मिलनेके लिए नहीं आया था?
स्वाभाविक ही कोई नहीं था।
और आप पाससे गुजरती हुई बग्घीमें यों ही जाकर बैठ गये?
नहीं, मेरे एक मित्र वहाँसे बग्घी में गुजर रहे थे। उन्होंने मुझे देखा और गाड़ी में बैठा लिया।
और आप बम्बई में यथाशक्ति किसी भी प्रकारके प्रदर्शनको टालना चाहते थे?
जी हाँ।
और जब आपको उपद्रवकी खबर लगी तो आप लोगोंको शान्त करने पहुँचे?
जी हाँ, बेशक।