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भाषण : 'डेकन सभा', पूनाकी बैठकमें

भारतमंत्री के साथ पत्र-व्यवहार शुरू भी कर दिया है। गांधीजीने कहा कि मैं भारत सरकार के प्रति उसके सहानुभूतिपूर्ण रुखके लिए कृतज्ञ हूँ। गांधीजीने साफ कहा कि इस नये कानूनके परिणामस्वरूप भारतीय दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी-नागरिक बनने, औरोंकी भाँति व्यवसाय करने और भू-सम्पत्ति रखने आदिके अपने बुनियादी अधिकारोंसे वंचित हो जाते हैं। गांधीजीने डॉक्टर सर रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकरकी[१] अध्य- क्षतामें पूनामें १८९६ में होनेवाली एक सभाका उल्लेख किया, जिसमें इसी प्रकारके एक अन्यायपूर्ण कानूनका[२] विरोध किया गया था। उस अवसरपर डॉ० भाण्डारकरने कहा था कि वे कभी राजनीतिमें भाग नहीं लेते और न कभी इस प्रकारकी इच्छा ही उनके मन में उठती है; परन्तु चूँकि इस बातका यकीन होनेपर कि ट्रान्सवालमें रहनेवाले भारतीयोंको असहनीय कष्ट हो रहे हैं, उन्होंने बड़ी प्रसन्नताके साथ सभाकी अध्यक्षता स्वीकार करनेका निश्चय किया। गांधीजीने श्रोताओंको स्मरण दिलाया कि पूना राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षणिक आन्दोलनोंका एक बड़ा केन्द्र रहा है; इसलिए वर्तमान आन्दोलनमें भी पूनाका योगदान बहुत ठोस होना चाहिए। जनरल स्मट्सने दक्षिण आफ्रिका के लिए रवाना होते समय महायुद्ध के दौरान भारतके द्वारा किये गये बलिदानोंकी प्रशंसा की थी; श्री गांधीने उसका भी उल्लेख किया और कहा कि जनरल स्मट्सकी सिफारिशका आशय यह था कि भारतके साथ समानताका व्यवहार किया जाना चाहिए। इसके बाद भी वही संघ-सरकार, जनरल स्मट्स जिसके सदस्य - एक ऐसा निन्दनीय कानून पास करने जा रही है। श्री गांधीने जोर देकर कहा कि दक्षिण आफ्रिका के भारतीय संघ सरकारसे राजनैतिक अधिकार नहीं माँगते और न वे दक्षिण आफ्रिकाकी संघ संसदमें बैठनेका हक ही तलब कर रहे हैं। उस देशमें अप्रतिबन्धित आवजनका भी कोई अन्देशा नहीं है। यह बड़े दुखकी बात है कि ट्रान्सवालके लोग भारतीयोंको निवास, कारोबार चलाने या अपनी ही कमाईके रुपयोंसे जमीन खरीदने-जैसे साधारणसे अधिकारोंका दिया जाना भी बरदाश्त नहीं कर सकते। क्या भारतीयों को उनके बिलकुल ही बुनियादी अधिकारोंसे वंचित रखना या उनके मुँहसे रूखा-सूखा रोटीका टुकड़ा छीनना उन्हें शोभा देता है? श्री गांधीने श्रोताओंको बतलाया कि वहाँके भारतीयोंने अब ठान[३] लिया है कि वे इसका जवाब अब पूरे नागरिक अधिकारोंकी माँग करके देंगे और जबतक वे प्राप्त न होंगे तबतक सत्याग्रह आन्दोलन चलाते रहेंगे। ट्रान्सवालके लोगोंने इस कानूनके जरिये यह चाहा कि भारतीयों को स्वर्ण खानोंके क्षेत्रमें व्यापार करनेका जो अधिकार निर्विवाद रूपसे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयके द्वारा मिल चुका है, उनसे छीन लिया जाये। ट्रान्सवालके लोगों का कहना

  1. डॉ० रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकर (१८३७-१९२५); प्राच्य विद्या-विशारद और समाज-सुधारक।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १४७।
  3. 'बॉम्बे सीक्रेट एब्स्टेक्टस' में प्रकाशित विवरणके अनुसार गांधीजीने भारतीयोंकी उस सभाका उल्लेख किया था जो दक्षिण आफ्रिका ४ अगस्तको हुई थी।