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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था कि इस नये कानूनमें भारतीयों के जानेमाने अधिकारोंको मान्यता दी गई है; और उन्होंने तो मुझपर यह आरोपतक लगाया था कि मैंने एक प्रकारसे अधिनियमका समर्थन किया था। श्री गांधीने कहा कि यह सरासर झूठ है। परन्तु ट्रान्सवालके लोग इस विधानसे भी सन्तुष्ट नहीं हुए। श्री गांधीने कहा कि उनमें से कुछ ट्रान्सवाली सज्जन भारतीयोंको बिलकुल ही पृथक करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। वे भारतीयोंसे अपना कारोबार अपनी बस्तियोंमें ही सीमित रखनेको कहते हैं। ये बस्तियाँ भारतके गाँवोंके महारवाड़ों[१] अथवा भंगीवाड़ों के समकक्ष हैं। इसका तो यह अर्थ हुआ कि भारतीय आपसमें ही व्यापार चलायें। श्री गांधीने भाषण समाप्त करते हुए कहा कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके लिए वैसा ही सत्याग्रह करनेका समय आ पहुँचा है जैसा उन्होंने कुछ वर्ष[२] पूर्व चलाया था, जिसका स्वर्गीय श्री गोखलेने अनुमोदन किया था और जिसे उन्होंने अपना आशीर्वाद भी दिया था। ट्रान्सवालमें भारतीय जब एक ऐसे संकटके द्वारपर खड़े हों, तब यहाँ भारतमें आप लोगों को यही उचित है कि आप उनकी समस्याको पूर्ण रूपसे समझें ; औरोंकी अपेक्षा महाराष्ट्रके लोगोंके लिए यह अधिक उचित है क्योंकि वह अपनी विद्वत्ता और अध्ययन-परायणताके लिए प्रख्यात है। आप दक्षिण आफ्रिकाकी स्थितिका गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करें और तन-मनसे समस्याका हल निकालनका प्रयत्न करें। प्रस्तावका अनुमोदन प्रोफेसर काले[३], श्री भोपटकर[४] और श्री देवधरने[५] किया। प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ।

[ अंग्रेजी से ]

यंग इंडिया, १३-८-१९१९

१३. भाषण : गुजराती बन्धु-समाजकी सभा में

पूना

[ अगस्त ८, १९१९]

मैं आजकल स्वदेशीकी बात करता हूँ। अन्य प्रवृत्तियोंसे समय बचाकर मैं वह सारा समय स्वदेशीपर ही लगाता हूँ। स्वदेशीसे ही हमें स्वराज्यकी प्राप्ति होगी। जिस समय मैंने सूरतमें “स्वदेशी और स्वराज्य" पर भाषण[६] दिया था उस समय मुझे खयाल आया कि मुझे उपस्थित लोगोंको समझाना चाहिए कि मैं जो कुछ चाहता

  1. महाराष्ट्रकी एक हरिजन-जाति।
  2. १९१३-१४ के सत्याग्रहकी ओर संकेत है; देखिए खण्ड १२।
  3. प्रो० वामन गोविन्द काले, समाज-सुधारक, लेखक व अर्थशास्त्री।
  4. लक्ष्मण बलवंत भोपटकर, प्रख्यात वकील, व्यायाम-विशारद और राजनीतिज्ञ।
  5. गोपाल कृष्ण देवधर (१८७९-१९३५ ); भारत सेवक समाज ( सवेंटस ऑफ इंडिया सोसाइटी) के सदस्य और श्रीनिवास शास्त्रीके बाद उसके अध्यक्ष।
  6. देखिए खण्ड १५, पृष्ठ ५०१-५०८।