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उपद्रव जाँच समिति के सामने गवाही


लेकिन मुझे तो स्पष्ट याद है कि मैंने श्री गाइडरसे कहा था कि नेतागण वहाँ भीड़ को काबू में करनेकी कोशिश कर रहे थे। में तो ऐसा ही समझता हूँ।

१४ तारीखको इस सभाके बाद आपने अपने गणों [?] के माध्यम से गलियोंमें बहुत-सी सभाओं में भाषण किये?

जी हाँ।

और आपने अपने भाषण लिखकर उन्हें अपने नगर में कई श्रोताओं द्वारा लोगोंके समक्ष पढ़वाया, जिसका उन सबके दिमागपर बड़ा शमनकारी प्रभाव पड़ा?

जी हाँ।

और यह ११ तारीखसे शुरू होकर फिर सभाओंपर पाबन्दी लगनेतक चलता रहा?

जी हाँ।

और जिन्हें हम अहमदाबादके पढ़े-लिखे लोग कह सकते हैं, उन लोगोंने क्या इस प्रचार कार्यमें कोई सक्रिय हिस्सा लिया?

हाँ, उनमें से कुछने तो लिया।

अब तो आप एक खासे अर्से, ५ साल से अहमदाबादमें रह रहे हैं। यहाँके पढ़े-लिखे लोगोंके बारेमें आपका क्या विचार है? क्या वे ऐसे दंगे-फसादवाले आन्दोलनोंमें शामिल होकर अहमदाबादमें मकानात जलाया करते हैं और तार वगैरह काटा करते हैं।

मैंने तो उन्हें ऐसा कुछ करते नहीं देखा।

अलबत्ता वे भाषण देकर तथा रौलट विधेयक और ऐसे ही अन्य कानूनोंकी आलोचना करके सरकारको स्थितिको खतरेमें डाल देनेको तत्पर रह सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद वे आपको शान्त ढंगके लोग लगे?

जी हाँ।

अब आपको यह तो मालूम है कि १९१८ में मिल-मजदूरों और मिल-मालिकोंके बीच कुछ तकरार हो गई थी।

हाँ, मेरा खयाल है, १९१८ में ही हुई थी।

और रोज-ब-रोज ये मिल मजदूर भारी संख्यामें इकट्ठे हुआ करते थे और तब आप और आपकी ही तरह अनसूयाबेन तथा अन्य लोग भी इन्हें उपदेश दिया करते थे।

जी हाँ।

उन दिनों हजारों मिल मजदूर एक साथ जमा होते रहे, और जब मजदूरीका सवाल एक बहुत ही क्षोभजनक मुद्देके रूपमें उपस्थित था तब भी वे अन्ततक बहुत ही व्यवस्थित बने रहे। उन्होंने नगर में बड़े-बड़े प्रदर्शनोंमें भाग लिया और फिर भी भीड़ बराबर व्यवस्थित रही, और मिल मजदूरोंका व्यवहार बहुत अच्छा और संयत था। है न ऐसी बात?

जी हाँ, बिलकुल। मैंने तो उन्हें ऐसा ही पाया।