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कांग्रेस

एक दिनके लिए मुलतवी करना पड़ा था। अतः वर्षासे बचाव के लिए छाजनमें जो खर्च हुआ वह अधिक ही हुआ।

जैसा मण्डप वैसा ही तम्बुओंके बारेमें भी हुआ। तम्बुओंपर खर्च करनेकी बजाय शहरके लोगोंसे मिलकर पहलेसे ही प्रबन्ध किया जा सकता था। परन्तु असल में हम लोगोंको जो आदत पड़ गई है उससे हम मुक्त नहीं हो पाते। अतः कांग्रेस जैसा विराट जन सम्मेलन हुआ परन्तु जनतापर उसका पूरा-पूरा प्रभाव नहीं पड़ सका। अमृतसर में वैशाख सुदी १ को जो मेला भरता है उसमें कांग्रेसकी अपेक्षा कहीं अधिक लोग सम्मिलित होते हैं और फिर भी सबकी सुविधा तो हो ही जाती है। उनके लिए कोई बड़ा इन्तजाम नहीं करना पड़ता, पहलेसे कोई बड़ा खर्च भी नहीं करना पड़ता; उसमें स्वल्प प्रयत्न से भी बहुत मिल जाता है। किन्तु महाप्रयास करनेपर स्वल्प परिणाम दे पाती हैं।

व्यवस्थापक समिति

किन्तु कोई यह कह सकता है कि इस शुभ अवसर की बात करते हुए यह मीनमेख क्यों? शिकायत इसीलिए कर रहा हूँ कि हम भविष्य में इससे कहीं अच्छी व्यवस्था कर सकें। ऐसे ही विचार दूसरोंके मन में भी उठे हैं। इसलिए अखिल भारतीय कांग्रेसने एक समिति भी नामजद की है। उस समितिका काम नीचे लिखे अनुसार है :

१. कांग्रेसके संविधानकी जाँच करना और यदि उसमें फेरफार करने की जरूरत हो तो उसपर विचार करना।

२. कांग्रेसके जुदा-जुदा विभागों में रुपये-पैसे से सम्बन्धित मदोंकी जाँच-पड़ताल करना और उनपर विचार करना।

३. आगामी वर्षके कांग्रेस अधिवेशनके सम्बन्धमें विशिष्ट सूचनाएँ देना।

इस समिति में सर्वश्री केलकर, रंगास्वामी आयंगार, आई॰ बी॰ सेन, माननीय विट्ठलभाई पटेल तथा मुझे नामजद किया गया है। समितिको ३० जूनके पहले अपनी रिपोर्ट दे देनी है।

भाषण पढ़ना एक जुल्म

किन्तु अभी तो मुझे एक दूसरी शिकायत भी करनी है। स्वागत समिति और कांग्रेस अध्यक्षके भाषण इतने लम्बे होते हैं कि उन्हें किसी भी अवसरपर पढ़कर सुनाना जुल्म करने जैसा है। किन्तु ५,००० लोगोंके सामने लम्बे-लम्बे भाषण पढ़ना तो क्रूरता ही कहलायेगी। तथापि भाषण तो लम्बे ही होते हैं। अनेक विषयोंका विवेचन करने में बहुतसे पन्नोंका भर जाना स्वाभाविक ही है। तो फिर क्या किया जाये? मुझे तो लगा कि ये दोनों भाषण हिन्दुस्तानी (उर्दू तथा देवनागरी लिपि) में, अंग्रेजीमें और जिस प्रान्तमें कांग्रेसका अधिवेशन हो उस प्रान्तकी भाषामें छापने चाहिए एवं प्रतिनिधियों तथा दर्शकोंको मण्डपमें आनेसे पहले, द्वारके सामने ही मिल जाने चाहिए। फिर आध घंटे में दोनों भाषणोंका सारांश पढ़कर सुना दिया जाये या मौखिक रूपसे कह दिया जाये, यह उचित मालूम होता है।