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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

अध्यक्षोंके भाषण

दोनों ही व्याख्यान मनन करने लायक थे। स्वामी श्री श्रद्धानन्दजीके भाषण में उनकी धार्मिकताकी छाप थी। हम अंग्रेजोंका अपमान कैसे कर सकते हैं? उन्होंने हमें एन्ड्रयूज, हह्यूम, वेडरबर्न जैसे लोग दिये हैं। इस तरह उन्होंने हमें प्रेमकी झाँकी दिखाई है। पण्डित मोतीलालजी के भाषण में तीखापन था। उन्होंने पंजाबके दुःखका अनुभव किया है। उनकी आत्मा उससे बहुत दुःखी हुई है; और इसे उन्होंने अपने व्याख्यान में प्रकट किया। स्वामीजीका भाषण हिन्दी में होनेके कारण लोगोंने उसे ठीकसे ध्यान देकर सुना। यद्यपि बादमें लोग कुछ थक-से गये थे। मोतीलालजीका भाषण अंग्रेजीमें पढ़े जानेके कारण कोई उसे सुननेको ही तैयार नहीं था। पहले तो बहुत ही शोर-गुल होता रहा, परन्तु पण्डित मालवीयजीके आग्रहपर कुछ शान्ति हुई। भाषणका बहुत-सा अंश तो बिना पढ़े ही छोड़ देना पड़ा।

प्रस्ताव
सम्राट्का आभार

कांग्रेसके प्रस्ताव बहुत महत्त्वपूर्ण थे। प्रथम प्रस्ताव सम्राट्का आभार माननेसे सम्बन्धित था। उस प्रस्तावपर बहस तो काफी हुई परन्तु आखिरमें वह पास हो गया। साम्राज्यीय घोषणामें जैसी उदारता दिखाई गई है वैसी उससे पहलेकी विज्ञप्ति आदिमें नहीं थी। उसके बाद हमने देखा कि बहुत-से लोग जो केवल सन्देहवश परेशान किये जा रहे थे, उससे छुटकारा पा गये हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है। इन सबको कैद करना यदि अन्याय था तो उन्हें मुक्त करने में उदारता बरती गई है, इसमें सन्देह नहीं। अतः इस काम के लिए धन्यवाद देना हमारा कर्त्तव्य था।

भूलोंकी स्वीकृति और निन्दा

परन्तु प्रस्तावों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव तो हमारी जितनी भूलें थीं उनपर नजर डालना और उनकी निन्दा करना था। इन प्रस्तावोंको मंजूर करनेमें जो आनाकानी हो रही थी, वह समझमें न आने लायक थी। अहमदाबाद, वीरमगांव, अमृतसर, गुजरांवाला, कसूर आदि स्थानोंमें हमारे अपने ही लोगोंने मकान जलाय, आदमियोंको मार डाला, पुल फूँके, पटरियाँ उखाड़ीं, तार काटे; इसके लिए किसी प्रमाणकी आवश्यकता नहीं। इसके पीछे सी॰ आई॰ डी॰ वालोंका हाथ था, यदि ऐसा कोई कहे और वह सच हो, तो भी हमारे कितने ही लोग उनकी बातोंमें फँस गये और न करने लायक काम किये। इसकी निन्दा होनी ही चाहिए। जो व्यक्ति अथवा समाज अपने दोषों को देखने की इच्छा नहीं रखता अथवा उन्हें स्वीकार करने में डरता है, वह आगे बढ़ ही नहीं सकता। जबतक हम अपने आसपास विद्यमान गन्दगीको नहीं देख पाते तबतक हममें उसे दूर करने की शक्ति नहीं आ सकती। गन्दगी जमकर बैठ जाती है। इसके सिवाय जो गलतियाँ हमने की है जबतक हम उनकी समुचित निन्दा नहीं करते तबतक दूसरोंके दोष देखने और बताने का हमें कोई अधिकार ही प्राप्त नहीं होता। हमने सरकारी इमारतों आदिमें आग लगाई। यदि हम इन घटनाओंपर पश्चात्ताप न