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भाषण : गुजराती बन्धु समाजकी सभा में

हूं वह सब स्वदेशी में ही आ जाता है। मैं इस समय इसीका प्रचार करना चाहता हूँ और मुझे उम्मीद है कि भारतमें चन्द दिनों अथवा चन्द महीनोंमें वाइसरायसे लेकर भंगीतक सभी व्यक्ति यह जान जायेंगे कि स्वदेशीसे ही स्वराज्यकी प्राप्ति होगी। इसके लिए स्वदेशी [ के आदर्श ] को शुद्ध बनाये रखना आवश्यक है। यह इतनी महत्त्वपूर्ण वस्तु है कि इसे दूषित नहीं करना चाहिए। भारत इस समय तीन तापोंसे पीड़ित है :

(१) रोग : भारतके लोग अपने इतिहास में, किसी भी समय, इतने अधिक रोगोंसे पीड़ित नहीं थे। यहाँ जितने लोग रोगोंसे परेशान रहते हैं उतने सारी दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं रहते।

(२) भुखमरी : पिछले कई वर्षोंके अनुभवसे यह बात सिद्ध हो गई है कि भारतकी अधिकांश जनता भूखों मरती है। सर विलियम विल्सन हंटरने चालीस वर्ष पूर्व स्पष्ट रूपसे बताया था कि भारतकी तीन करोड़ आबादीको दिनमें केवल एक बार ही भोजन मिलता है और वह भी सूखी रोटीका टुकड़ा और नमक। इससे अधिक उन्हें घी, तेल या मिर्च- कुछ भी नहीं मिलता। ऐसी दुर्दशा तो हमारी चालीस बरस पहले थी। प्रत्येक अधिकारीको 'नीली पुस्तिका' में यह लिखना पड़ा है कि भारतकी गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। और गाँवोंमें घूमने-फिरनेवाले लोग जानते हैं कि हमारे किसान वर्गकी स्थिति तो और भी बुरी है। गुजरातमें रहनेवाले लोगोंसे पूछने पर पता चलेगा कि उन्हें दूध प्राप्त करनेमें कितनी दिक्कतका सामना करना पड़ता है। छः मासके बच्चेके लिए भी दूध जुटाने में काफी कठिनाई होती है। अहमदाबादके आसपास के गाँवोंमें लोगों से पूछनेपर मुझे हमेशा यही जवाब मिलता है कि हमें दूध नहीं मिलता इतना ही नहीं, हमारे बच्चोंको भी वह नसीब नहीं होता। इससे पता चलेगा कि चालीस वर्ष पूर्व हमारी जो स्थिति थी, उससे कहीं अधिक बुरी स्थिति आज है।

(३) नग्नावस्था : इस समय भारत वस्त्रके अकालसे भी पीड़ित है। सर दिनशा वाछाके[१] हिसाबके अनुसार चार वर्ष पहले भारतके प्रत्येक मनुष्यको १३ गज कपड़ा मिल पाता था। अब केवल ९ गज ही मिलता है। अर्थात् अब प्रत्येक व्यक्तिके पीछे कपड़े में चार गजकी कमी हुई है तथा उसी मात्रामें हमारी गरीबीमें बढ़ोतरी हुई है।

दो वर्ष पूर्व मैं जब चम्पारनमें काम कर रहा था तब मुझे इस बातका निजी अनुभव हुआ था। चम्पारनकी स्त्रियोंने मुझसे बिना किसी झिझक के स्पष्ट शब्दों में शिकायत की थी कि हमारे पास तन ढकनेको पर्याप्त वस्त्र नहीं है तो फिर हम नहा-धोकर स्वच्छ कैसे रह सकती हैं? अपनी पवित्र हृदय बहनोंकी ऐसी शोचनीय अवस्था देखकर मेरा हृदय आठ-आठ आंसू रोता था।

जो देश इन तीन तरहकी व्याधियोंसे पीड़ित है उस देशसे शौर्य, धैर्य तथा सचाई आदि गुणोंका लोप हो गया है। जिस देशके लोगोंमें इन तीन गुणोंका अभाव

  1. सर दिनशा ईदुलजी वाछा, १८४४-१९३६६ प्रसिद्ध पारसी राजनीतिज्ञ; १९०१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष।