पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शब्दको निकाल देना था तथा श्री मॉण्टग्युका आभार मानना था। आखिरकार "निराशाजनक" विशेषण तो ज्योंका-त्यों रहने दिया गया किन्तु मेरे अधिकांश सुझाव—ऐसी भाषामें जिन्हें दोनों पक्ष स्वीकार कर सकें—सर्वसम्मति से स्वीकृत हुए। परन्तु इसके पहले मत गणनाकी जो योजना की गई वह एक ऐसी बात है जिसके लिए जनताकी प्रशंसा की जानी चाहिए। मण्डपमें दर्शकों सहित कुछ नहीं तो १५,००० मनुष्य एकत्रित थे और चलने-फिरने लायक रास्ता भी मुश्किलसे ही मिल पाता था। इन लोगों में मत देनेवालोंकी अपेक्षा मत न देनेवालोंकी संख्या अधिक थी। मत देने वालोंकी गिनती करनेका काम लगभग असम्भव ही था। कांग्रेसके ३४ वर्षके कार्यकालमें यह पहला अवसर था जब कि दर्शकों और किसानोंके प्रतिनिधियोंको अलग करके मतगणना करनेकी सुन्दर योजना बनाई गई। लगभग पाँच घंटेतक विभिन्न विचार रखनेवाले लोगोंके भाषण हुए। सभी पक्षोंकी ऐसी राय थी कि इस बीच यदि बिना मत लिए ही कोई समाधान हो जाये तो अच्छा हो। इस सम्बन्धमें विचार-विमर्श आरम्भ हुआ। आखिरकार सुलह हो गई और मत लिए बिना श्री मॉण्टेग्युके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए तथा सुधारोंके अनुसार काम करनेका प्रस्ताव पास हो गया।

उस प्रस्तावकी भाषा जो श्री दासके पक्षमें मंजूर हुई थी, मुझे पूरे तौरपर पसन्द नहीं थी। "निराशाजनक" शब्दको रहने देना भी असह्य था। परन्तु जहाँ मूल तत्त्व सुरक्षित हो वहाँ मतभेद उत्पन्न करना मुझे उचित नहीं जान पड़ा एवं पण्डितजी, श्री जिन्ना आदि भी उससे सहमत हो गए। अतः प्रस्तावका बाकी अंश उन्हीं शब्दों में पास हुआ जो दोनों पक्षोंको मँजूर था। यदि कांग्रेसने सुधारोंको स्वीकार न किया होता तो मेरी अल्पमतिमें यह हमारे लिए शर्मकी बात होती। यदि सुधारोंपर अमल करनेकी हमारी इच्छा न होती और हममें उनका लाभ न उठानेकी हिम्मत होती तो मुझ जैसे व्यक्तिको कुछ नहीं कहना था। परन्तु जब उन्हें अमलमें लाना हमें मँजूर हो तब इस बातको हमारा खुले आम स्वीकार न करना तथा उपयोगी सुधार करानेवाले व्यक्तियोंका उपकार भी न मानना मुझे अनुचित जान पड़ा। साम्राज्यीय घोषणा में जिन भावोंको व्यक्त किया गया है उन्हें सद्भावनापूर्वक ग्रहण न कर सकना भी मुझे शर्म की बात लगी। किसी आशंकाके कारण अधिकारियोंसे सहयोग करनेका विचार रखना तो कमजोरीकी निशानी है। जिस समय सहयोगसे देशका भला हो सकता हो ऐसे सभी अवसरोंपर अधिकारियोंसे सहयोग करना चाहिए। उनपर विश्वास करना मर्दानगीकी निशानी है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कांग्रेसने संशोधन स्वीकार करके ठीक ही किया है और मुझ आशा है कि हम उनका सदुपयोग करके यदि इन सुधारोंमें उचित परिवर्तन करा सकें तो कुछ ही वर्षोंमें हम पूर्ण स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे।

असभ्यता और अत्युक्ति

इसके उपरान्त लॉर्ड चेम्सफोर्ड आदि अधिकारियोंके सम्बन्धमें प्रस्ताव पास हुए। मुझे ऐसा लगता है कि लॉर्ड चेम्सफोर्ड तथा सर माइकेल ओ'डायरसे सम्बन्धित प्रस्ताव कांग्रेस उप-समितिकी रिपोर्ट प्रकाशित होनेतक यदि स्थगित रहते तो बहुत अच्छा