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२४७. बालकोंकी अत्यधिक मृत्यु-संख्या

श्री कंचनलाल खाँडवालाने बच्चोंकी मृत्यु-संख्याके सम्बन्धमें जो पत्र लिखा है। हम उसकी ओर पाठकोंका ध्यान विशेष रूपसे आकर्षित करना चाहते हैं। न्यूजीलैंडमें प्रतिवर्ष औसतन एक हजार बच्चोंमें से ५१ की मृत्यु होती है जब कि बम्बईमें यह संख्या ३२० तथा संयुक्त प्रान्तमें ३५२ है। इस तथ्यपर चाहे जिस ढंगसे विचार करें यह हमारे रोंगटे खड़े करनेवाला है। इसके कारण स्पष्ट हैं किन्तु एसे हैं जिनका उपचार किया जा सकता है। इसलिए इनपर सोच-विचार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त हानिप्रद कारण बढ़ते जा रहे हैं। इनमें से कुछ एक निम्नलिखित हैं :

(१) हवा, (२) खुराक, (३) अनमेल और बाल-विवाह, (४) विषयासक्ति, (५) स्वास्थ्यके सम्बन्ध में हमारा अज्ञान और (६) वर्त्तमान असह्य मँहगाई।

इनमें से केवल अन्तिम कारणके लिए ही फिलहाल सरकारको मुख्य रूपसे जिम्मेवार माना जा सकता है। ऐसा भेद करनेका कारण यह है कि हम अपनी बहुत-सी गलतियों और कष्टोंके लिए सरकारको दोष देते रहते हैं। हमें यह कहनेकी आदत ही पड़ गई है कि यदि स्वराज्य मिल जाये तो हमारे सभी दुःख अर्थात् बालकोंकी बढ़ती हुई मृत्यु-संख्याकी समस्या भी तत्काल हल हो सकती है। सामान्यतः इतना तो ठीक ही है कि हमारे देशमें भुखमरी अभी बढ़ती जा रही है और स्वराज्य मिल जानेपर उसे कम करना सम्भव है। तथापि हमारी अधिकांश व्याधियाँ, यदि हम उनका अपने द्वारा सम्भव, आवश्यक और उचित उपचार नहीं करते, तो स्वराज्य मिल जानेके बाद भी ज्योंकी-त्यों बनी रहेंगी। आज हम इसी विषयपर विचार करेंगे।

हम अपने यहाँको आब-हवाको नहीं बदल सकते। बहुत अच्छी आबहवावाले मुल्कोंमें न्यूजीलैंड भी एक है। दूसरोंकी तुलना में हिन्दुस्तानकी आब-हवा निर्बल बना देनेवाली मानी जाती है। भयंकर गर्मी में शरीरको स्वस्थ और सुगठित बनाना कठिन है। यह तो सभी जानते हैं कि गर्म आब-हवावाले प्रदेशकी अपेक्षा नम आब-हवा शरीरको अधिक नुकसान पहुँचाती है। फिर भी ईश्वरने मनुष्यको इतनी शक्ति दी है कि वह इस प्रकारकी बहुत-सी बाधाओंको पार कर सकता है। सभी लोग ऐसी अड़चनोंको कमोबेश हल कर ही लेते हैं। जिस हदतक आब-हवा मृत्युके अनुपातको कम करने में बाधक है, उस हदतक उपयुक्त उपायोंके द्वारा हम उसके प्रतिकूल प्रभावको नष्ट कर सकते हैं। इसमें हमारी गरीबी सबसे बड़ी बाधा है। और उतनी ही बड़ी दूसरी बाधा बालकोंके पालन-पोषणके सम्बन्धमें हमारा अज्ञान है।

बालकको जैसी खुराक मिलनी चाहिए वैसी हमेशा नहीं मिलती। बालकोंकी खुराकके विषय में जानकारी प्राप्त करना बहुत ही आसान है। बालकको माँका दूध मिलना चाहिए और जब माँका दूध मिलना बन्द हो जाये तब उसका पालन-पोषण गायके दूधपर ही होना चाहिए। किन्तु इसके बदले बालकके दाँत निकलनेके पहले ही दूधकी बजाय पके हुए अन्नका ही उपयोग होने लगता है। बालकका मेदा