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बालकोंकी अत्यधिक मृत्यु-संख्या

खाद्यान्नको पचा सके इसके पहले ही उसे अन्न मिलने लगता है। इसलिए बालकको रोग घेर लेते हैं, वह कमजोर हो जाता है और प्रायः बेमौत मर जाता है। अनुपयुक्त आहारके कारण भी मुख्यतः हमारी गरीबी और हमारा अज्ञान ही है।

इन दोनों कारणोंसे भी ज्यादा बड़ा कारण अनमेल विवाह और बाल-विवाह है। पन्द्रह वर्षकी लड़की प्रजननके योग्य हो ही नहीं पाती। ऐसी लड़कीकी सन्तानमें साहस या जीवन-शक्ति कम होती हैं। हमारे बच्चे इतने निर्बल होते हैं कि उनको पालना-पोसना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इसीलिए उनमें से अधिकतर बच्चे एक वर्षकी उम्रतक पहुँचने के पहले ही मर जाते हैं। जिस प्रकार बाल-विवाहके कारण अधिकतर बच्चोंकी मृत्यु हो जाती है उसी प्रकार बहुतसे बच्चोंकी मृत्यु अनमेल विवाहका परिणाम है। जो लोग उम्र बीत जानेके बाद विवाह करते हैं उनकी सन्तान यदि जीवित न रहे तो इसमें अचरजकी कोई बात नहीं।

इसके अतिरिक्त अत्यधिक विषयासक्तिके कारण भी बच्चोंकी मृत्यु-संख्या बढ़ती है। पश्चिमी लोगोंने धर्मके कारण नहीं बल्कि अपने शारीरिक सुखके कारण तथा अधिक बच्चे उत्पन्न होंगे तो उनका पालन-पोषण करना कठिन होगा इस वजह से सन्तानोत्पत्तिपर अंकुश लगा रखा है। हमारे लिए अतिरिक्त विषय-भोगको रोकनेका यह कारण पर्याप्त नहीं होता। किन्तु हम लोग हिन्दुस्तानमें पश्चिमी देशोंकी अपेक्षा अधिक धर्ममय जीवन बितानेका लम्बा-चौड़ा दावा करते हैं लेकिन हम उन धर्मविहित प्रतिबन्धोंको कोई महत्त्व ही नहीं देते अतः बहुतसे माता-पिता धर्म अथवा अर्थका विचार किये बिना विषय-भोगमें फँसकर समयका विचार किये बिना सन्तान उत्पन्न करते रहते हैं। फलस्वरूप जाने-अनजाने रोगी बालक पैदा होते हैं और वे शैशवावस्था में ही कालका ग्रास बन जाते हैं।

पाँचवाँ कारण है हमारा स्वास्थ्य संबंधी नियमोंके बारेमें घोर अज्ञान। माता- पिता दोनों में से किसीको इस विषयका कोई ज्ञान नहीं होता। जिन्हें ज्ञान होता है वे उन [नियमों] पर अमल करने में आलस्य करते हैं और जहाँ आलस्य भी नहीं होता वहाँ साधनों की कमी होती है। इससे एक ही परिणाम निकलता है: बालकोंकी मृत्यु-संख्या निरन्तर बढ़ती ही जाती है। प्रायः बालकोंकी 'हत्या' का कारण दाई होती है। उसे जच्चाकी तीमारदारीका कोई ज्ञान ही नहीं होता। वह जच्चासे सामान्य नियमोंतक का पालन नहीं करवाती। इसलिए शिशु जन्म से ही बहुत ही विषम परिस्थितियोंमें पलता है और कालका ग्रास बन जाता है। यदि पहले दो महीनोंमें बच्चा बच भी गया तो दाईके समान ही अज्ञानी माता मनमाने ढंगसे उसका पालन-पोषण करती है और यदि [इस तरह] उसे मार नहीं डालती तो उसके स्वास्थ्यको तो निश्चय ही बिगाड़ देती है। अन्तिम कारण है दिन-दिन बढ़ती हुई असह्य मँहगाई। मँहगाई के कारण दूध-घी मिलना दुष्कर हो गया है। खुराकके लिए गेहूँकी आवश्यकता है किन्तु गेहूँ मिलता नहीं। इसलिए माँके दूधमें दिन-दिन पोषक तत्त्वोंकी कमी होती जाती है। और उसके बन्द हो जानेपर, माँ को इस बातकी जानकारी होनेके बावजूद, बच्चेको आवश्यक मात्रामें अच्छा दूध नहीं मिलता। ठण्डके दिनों में उसे पूरे कपड़े नहीं मिलते और घर भी सुविधाजनक नहीं होता। इस प्रकार प्रतिकूल