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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परिस्थितियाँ इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि श्री खाँडवालाने बालकोंकी जो भयंकर मृत्यु-संख्या बताई है, उसे कम करना मुश्किल हो गया है।

फिर भी उसकी रोकथामका उपाय तो किया ही जाना चाहिए और ये उपाय हैं भी सहज। यदि जनताको दी जा रही शिक्षा ठोस नींवपर आधारित हो तो उसे बालकों की परवरिशका ज्ञान आसानीसे मिल जायेगा। इस दरमियान, बालकोंकी परवरिशके नियमोंको समझाने के लिए बहुत ही सरल भाषामें लिखी हुई छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ जनतामें बाँटी जायें। भाषणोंके द्वारा भी माता-पिताको इसका ज्ञान दिया जा सकता है। नम हवासे कुछ हदतक हर व्यक्ति थोड़ीसी कोशिशसे अपना बचाव कर सकता है। घरके आसपास और भीतरकी नमीको अपनी मेहनतसे दूर किया जा सकता है। बालकको दूध मिलना ही चाहिए चाहे उसके लिए अन्य मदोंमें काट-कसर क्यों न करनी पड़े। दूध जैसी परिपूर्ण खुराक दूसरी नहीं है। हर व्यक्ति अपनी वासनाओंपर अंकुश रखे एवं जब वह इस योग्य हो और उसमें बच्चोंको पालने-पोसनेकी सामर्थ्य हो तभी सन्तानोत्पत्ति करे। ऐसे मुश्किल समय में सन्तानोत्पत्ति करना एक प्रकारकी बहुत बड़ी हिंसा है, यह मानकर अपनी वासनाओंको जीतने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य-संबंधी नियमोंको समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। मँहगाई एक ऐसा कष्ट है जिसका कोई-न-कोई इलाज किया जा सकता है, ऐसा हम मानते हैं। यदि जनताकी आमदनी बढ़ जाये तो मँहगाईको भी बरदाश्त किया जा सकता है। अतः या तो आमदनी बढ़ेगी या मँहगाई खत्म हो जायेगी, इसमें हमें कोई सन्देह नहीं है। फिर भी हमारा कर्त्तव्य तो मँहगाई दूर करने के उपाय करना है। यह अपने-आपमें एक स्वतन्त्र तथा विस्तृत विषय है जिसपर हम फिर कभी विचार करेंगे। हमें आशा है कि सामाजिक कार्योंमें रुचि रखनेवाला हर पाठक बच्चोंकी मृत्युको कम करनेके लिए वह जो उपाय अपना सकता है उन्हें जरूर अपनायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ११-१-१९२०
 

२४८. पत्र : न्यायमूर्ति रैंकिनको

[साबरमती आश्रम]
जनवरी ११, १९२०

प्रिय श्री रैंकिन,

सविनय अवज्ञाके सिलसिले में मैंने अपने वक्तव्योंके जो अंश[१] देने को कहा था वे संलग्न कर रहा हूँ। मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि ३० मार्चके तुरन्त बाद प्राप्त होनेवाले स्वामी श्रद्धानन्दजीके तार और पत्र मुझे नहीं मिल सके। यदि किसी मुद्देके सम्बन्धमें आप उन्हें बहुत जरूरी सबूत समझते हैं तो मेरा खयाल है कि आप उन तारोंकी नकलें तार-विभागसे पा सकते हैं और सम्भवतः पंजाबमें सी॰ आई॰ डी॰ के

  1. ये अंश प्राप्य नहीं हैं।