उसी दिनके लिए नियत कर देंगे? में समझता हूँ कि प्रकाशक श्री महादेव देसाईसे भी उसी समय पूछताछ हो जायेगी।[१]
आपका विश्वस्त,
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पेंसिलसे लिखे अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७१२८ (डी) से।
२५२. भाषण : आर्यसमाज-उत्सव, अहमदाबाद में
[जनवरी १२, १९२०]
मुझे खेद है कि समारोह जितने दिनों चलता रहा मैं उन सभी दिनों उसमें शामिल नहीं हो सका। मेरे पुराने शिक्षकने मुझसे कहा, तुम्हें आना ही होगा; और मैं उनके अनुरोधको अस्वीकार न कर सका। लेकिन मैंने सभामें आधे घंटेसे अधिक समयतक रुकने में अपनी असमर्थता भी उन्हें बता दी थी; क्योंकि मैंने जिन कुछ कार्योंका जिम्मा लिया है में निरन्तर उनको पूरा करने में लगा रहता हूँ। इस समाजके कितने ही उत्सवों में मैंने अनेक बार भाग लिया है। और हाल ही में में आर्यसमाजके अपने गढ़की यात्रा करके आया हूँ। आर्यसमाजके सम्बन्धमें मैंने जो विचार निश्चित किये हैं, इस अवसरपर मुझे वे विचार स्पष्ट रूपसे आपसे कह देने चाहिए क्योंकि तभी मेरा इस सभामें भाग लेना सार्थक सिद्ध होगा।
मुझे ठीक-ठीक याद नहीं है लेकिन जब आर्यसमाजका पहला उत्सव[२] हुआ था तब मैंने कहा था कि हिन्दुस्तान भरमें आज जितनी भी धार्मिक संस्थाएँ हैं और उनमें जितने भी धर्मगुरु अग्रस्थानपर विराजते हैं, स्वामी दयानन्द सरस्वतीको भी उनके साथ रखा जा सकता है; यह मेरी दृढ़ मान्यता है और अनुभवोंके साथ-साथ मेरी यह मान्यता दृढ़से दृढ़तर होती चली गई है। मैं जानता हूँ कि उत्तरमें पंजाबकी ओर आर्यसमाजका बहुत जोर है; उतना अन्य किसी स्थानपर नहीं है। और इस कारण कदाचित् मेरे कथन के आशयको यहाँ ठीक-ठीक न समझा जा सके। लेकिन इतना तो मैं दक्षिण आफ्रिकामें रहते हुए [आर्य] समाजसे सम्बन्धित जिन लेखों, उपदेशों भाषणों आदिपर मुझे मनन करनेका जो अवसर मिला उसके आधारपर आपको बतला सकता हूँ; अब में आपके सामने वे विचार प्रस्तुत करूँगा जिनका मैंने अनुभव किया है।
आर्यसमाजके वर्तमान आन्दोलनमें मुझे विशेष रूपसे दो दोष दिखाई पड़ते हैं। उन दो तत्त्वों में से एक है असहिष्णुता। अंग्रेजीमें उसे "इनटॉलरेशन" कहा जाता है।