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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है वे अधार्मिक हैं तथा मैं तो उनके लिए 'नामर्द' शब्दतकका प्रयोग करूँगा। मैं भारतके विषय में भी आजकल इस शब्दका प्रयोग कर रहा हूँ।

इस परिस्थितिका विचार करके जब मैं भाई-बहनोंसे [ इसका उपाय ] पूछता उस समय एक उत्तर तो मुझे यह मिलता कि धर्मकी स्थापना करनी चाहिए। निस्संदेह हमने धर्मको खो दिया है; लेकिन ऐसी परिस्थितियों में धर्मकी पुनः स्थापना करना अत्यन्त कठिन काम है। कारण, ऐसी दुर्दशामें पड़े हुए मनुष्यके लिए धर्मका पालन बहुत दुस्साध्य है। यह तो कोई बिरला महात्मा ही कर सकता है। मैं तो ऐसे लोगोंको 'योगी' ही कहता हूँ, लेकिन सबके सब लोग योगी नहीं बन सकते। और इसलिए आत्माकी शुद्धिके लिए शरीरकी शुद्धि भी आवश्यक है। " शुद्ध शरीरमें ही शुद्ध आत्मा निवास करती है।” शौर्य आदि गुणोंका जीर्णोद्धार करनेके लिए इन त्रिविध तापोंका संहार किया जाना चाहिए। इन दिक्कतोंके बीच जो मनुष्य अपने धर्मका पालन कर सकता है उसे मैं योगी कहता हूँ।

इस रोगका उपचार करने के लिए हमें प्रबल प्रयत्न करना चाहिए, और इसके लिए ज्ञानकी आवश्यकता है। ऐसे रोगोंसे पीड़ित लोगोंका उपचार करनेके लिए हमें अपना समय देना होगा। पहले तो हमें इस बातकी जाँच करनी चाहिए कि लोग अपने आलस्य के कारण भूखों मरते हैं अथवा वास्तविक अभावके कारण। भारतमें अनाज तो प्रचुर मात्रामें है; वह भूखोंको दिया जाना चाहिए। लेकिन उसे खरीदनेके लिए धनकी आवश्यकता है और इसीकी कमीके कारण भारत गरीब है।

इस स्थितिका मुकाबला करनेके लिए स्वदेशीकी जरूरत है। अपनी रुई और अपने रेशमकी रक्षा करना - इसे ही हम स्वदेशी कहते हैं। आजकलकी परिस्थितियोंको देखते हुए मैंने स्वदेशीकी यह संकुचित व्याख्या की है। हमने गत वर्ष सूती कपड़ेके लिए ५६ करोड़ रुपये तथा रेशमी कपड़ेके लिए ४ करोड़ रुपये विदेशों को भेजे। आदरणीय दादाभाई नौरोजी कहा करते थे कि भारत से बहुत सारा धन बाहर चला जाता है। यह सच है कि सेनाके महकमे में तथा पेन्शन आदि देनेमें काफी धन व्यय होता है, परन्तु मेरा कहना तो यह है कि स्वदेशीको भावनाके अभाव के कारण जितना पैसा जाता है उतना और किसी तरीकेसे नहीं जाता। गत वर्ष १८ करोड़ रुपयेकी चीनी आयात की गई। और इसी तरह दूसरी अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं जो आयात की जाती हैं और हमारा पैसा विदेशोंको जाता है, पर इस समय में उनकी चर्चा नहीं करूँगा। अभी तो मैं केवल जड़को ही पकड़ना चाहता हूँ और इसे पकड़ लेनेसे दूसरे तरीकोंसे बाहर जानेवाले पैसेका जाना स्वयमेव बन्द हो जायेगा। इसलिए हमारा सबसे पहला कर्त्तव्य यह है कि वर्तमान परिस्थितियोंमें हमें संकुचित स्वदेशी व्रतका पालन करना चाहिए और उसके लिए मैंने जो तीन व्रत आपके सामने रखे हैं उनपर अमल किया जाना चाहिए। [ यदि आप ] सुतके व्यापारमें अपना अधिकार जमा लेंगे तो अन्य दूसरी चीजें आसानीसे मिल जायेंगी। आज हम अपनी जरूरतका कपड़ा तैयार नहीं कर सकते, हमारी मिलें हमारी जरूरत को पूरा नहीं कर सकतीं। भारतमें जो वस्तुएँ तैयार नहीं की जातीं उन्हें तैयार करवानेके उपाय किये जाने चाहिए। यह एक प्रश्न है। इस समय मैं मिल मालिकोंके साथ इस विषयपर बातचीत कर रहा हूँ और सर फज़ल-