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२५५. पत्र : सर जॉर्ज बार्न्ज़्रको

जनवरी १३, १९२०

प्रिय सर जॉर्ज बार्न्ज़,

में एक तार[१] इस पत्र के साथ भेज रहा हूँ जो दक्षिण आफ्रिकासे मुझे मिला है। क्रूगर्सडॉर्पके मामलेका[२] जो हवाला है उसे आप शायद आसानी से समझ सकेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि नये अधिनियम द्वारा जो आंशिक संरक्षण पाने की कोशिश की गई थी, वह हालके फैसलेसे बेकार हो गई है। फैसलेपर अभी अपील की गई है और यदि हम ऐसा मानकर चलें कि अपीलमें भी हमारे विरुद्ध फैसला हो जाता है तो हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते। जहाँ कानून ही दोषपूर्ण हो वहाँ अदालतें कुछ भी राहत नहीं दे पातीं। इसका सशक्त प्रमाण उस वक्त मिला था जब उच्च न्यायालयके एक फैसलेसे[३] दक्षिण आफ्रिकाका वह प्रचलन छिन्न-भिन्न हो गया था जो भारतीय विवाहोंको कानूनी मानता था। आप जानते हैं कि १९१४ के कानूनने[४] उक्त फैसलेसे होनेवाली हानिका निराकरण किया था। मैं समझता हूँ कि आप इसका ध्यान रखेंगे तथा सर बेंजामिन रॉबर्टसनको हिदायत देंगे कि भारतीयोंके निगम बनाकर या अन्य प्रकारसे अचल सम्पत्ति रखनेके हकमें किसी तरह की बाधा न पड़े।

तारमें जो दूसरा मुद्दा उठाया गया है वह उस आयोगके सम्बन्धमें है जो नगरपालिकाओंके अधिकारोंमें प्रस्तावित विस्तारपर विचार करनेके लिए बैठ रहा है। निर्वाचित संस्थाओंकी शक्तिके विस्तारसे कोई डरे, यह बात विचित्र अवश्य लगती है। परन्तु यहाँ जब शक्ति पानेकी कोशिश ही इसलिए हो रही है कि उन लोगोंका, जिनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जीवन बरबाद कर दिया जाये तो ऐसी शक्तिको और बढ़ने देना वास्तवमें अपराध है। अतएव में आशा करता हूँ कि सर बेंजामिन रॉबर्टसन इस बातका ध्यान रखेंगे कि दक्षिण आफ्रिकाकी नगरपालिकाओंके मौजूदा अधिकारोंको बढ़ाने का कोई भी कानून बने तो वह उन भारतीयोंके अधिकारोंका पूरा-पूरा संरक्षण करे जिन्हें ट्रान्सवाल और फ्री स्टेटकी नगरपालिकाओंमें कोई भी प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है और केप तथा नेटालमें आंशिक प्रतिनिधित्व ही प्राप्त है।

आपने शायद इस बातपर गौर न किया हो कि पूर्वी आफ्रिकी प्रश्न अधिका-धिक जटिल होता जा रहा है। मैंने समाचारपत्रोंको एक पत्र लिखा है जिसे मैं संलग्न

  1. यह तार उपलब्ध नहीं है।
  2. क्रूगर्संडॉर्प नगरपालिका बनाम दादू लिमिटेड। देखिए "पत्र : अखबारोंको", २५-१-१९२० के पूर्व।
  3. सलै निर्णय, देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट १।
  4. भारतीय राहत अधिनियम, देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट २५।
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