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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर रहा हूँ।[१] आपने शायद उसे देखा होगा। क्या यह सम्भव नहीं कि आप मुझे इस विषयपर प्रकाशनार्थ कुछ सामग्री दें जैसी कि आपने कृपापूर्वक दक्षिण आफ्रिकाके बारेमें दी थी? आशा है कि आपके तारके जवाब में मेरा तार आपको मिला होगा। कृपया लेडी बार्न्स और कुमारी बाज़ से मेरा यथोचित निवेदन करे।

आप सबको नये वर्ष की शुभकामनाएँ।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७०५३) की फोटो-नकलसे।

२५६. पत्र : सी॰ पी॰ रामस्वामी अय्यरको

जनवरी १३, १९२०

प्रिय श्री रामस्वामी,

आपके पत्र[२] के लिए धन्यवाद। मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि जो संशोधन[३] अन्ततः पास हुआ वह वैसा नहीं है जैसा कि होना चाहिए था, परन्तु समझौतेका सार ही यह होता है कि वह किसी भी पक्षको पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं करता। इसमें प्रत्येक पक्षको कुछ ऐसी चीजका त्याग करना पड़ता है जो उसे प्रिय तो है किन्तु जो सिद्धान्तका अभिन्न अंग नहीं है। मेरा संशोधन[४] निश्चित रूपसे शोभनीय था और श्री मॉण्टेग्युकी महान् सेवाओंके प्रति उचित न्याय करता था। दूसरी ओर श्री पालका संशोधन उग्र था, क्योंकि उसमें 'सुधारोंका प्रयोग' जैसा शब्द-प्रयोग था। जिस संशोधनपर सभी सहमत हुए, वह बीचका रास्ता लेता था और मुझे लगा कि वह काफी है और मात्र इतना ही है कि देशको दिशा-दर्शन दे सके।

  1. देखिए "पत्र : अखबारोंको", १०-१-१९२०।
  2. इसपर ७ जनवरीकी तारीख दी हुई थी।
  3. तात्पर्थ कांग्रेसके वार्षिक अधिवेशनमें पास किये गये सुधार प्रस्तावके संशोधनसे है। सी॰ पी॰ रामस्वामी अय्यरने अपने पत्र में लिखा था : ". . .अगर आपने अपने प्रभावका उपयोग न किया होता तो कांग्रेसने जितनी हिंसात्मक और गैरजिम्मेदार कार्रवाईकी वह उससे भी अधिक हिंसात्मक और गैरजिम्मेदार कार्रवाई करती। लेकिन कहना पड़ता है कि आपने जो यह संशोधन स्वीकार कर लिया उससे मुझे बड़ा दुःख हुआ, क्योंकि उस संशोधनके बाद तो इस प्रस्तावका कोई मतलब ही नहीं रह जाता। क्या हममें से कोई भी ईमानदारीके साथ यह कह सकता है कि हमें इतना काफी नहीं दिया गया था जिससे हम अपनी स्वशासनकी क्षमताका प्रदर्शन कर सकते और क्या यह कहा जा सकता है कि अगर श्री मॉण्टेग्युने, जिनकी वास्तवमें जायज निन्दा ही की गई है, और लॉर्ड सिन्हाने, जिनका तिरस्कार उपेक्षा करना आज फैशन-सा हो गया है, बहुत ही कठिन परिस्थितियों में भी आग्रहपूर्वक हमारा पक्ष-पोषण न किया होता तो हमें जो कुछ मिला है, वह न मिल पाता?"
  4. देखिए "भाषण : अमृतसर कांग्रेस में सुधार प्रस्तावपर", १-१-१९२०।