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बहिष्कार और स्वदेशी


'मद्रास मेल' में प्रकाशित आपका लेख[१] पढ़नेका समय मुझे नहीं मिल पाया है। में उसे पढ़ेगा और आशा है कि कुछ समय के बाद इसके विषयमें आपको लिखूँगा।

हृदयसे आपका,

पेंसिलसे लिखे अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७०३४ ए) से।
 

२५७. पत्र : लछमैयाको

मारिशस[२]

जनवरी १३, १९२०

प्रिय श्री लछमैया,

आपका पत्र मिला। आशा है कि १६ तारीखको में बम्बई में होऊँगा। क्या आप मुझसे श्री रेवाशंकरके बँगलेपर मिल सकेंगे? मैंने विल्बरफोर्सका पत्र पढ़ लिया है, परन्तु आपसे मुझे स्थितिका अधिक सही हाल पता चलेगा। मैं बम्बईमें इतना व्यस्त रहूँगा कि मैं चाहूँगा कि आप मेरा अधिक समय न लें। मुझे ऐसा कहनेके लिए आप क्षमा करेंगे, परन्तु मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ ताकि मुझसे आपको क्या-क्या कहना है यह सब आप सोच रखें और अपने विचारोंको इस तरह व्यवस्थित कर सकें कि आप मुझे जो कुछ भी बताना चाहते हों, वह कुछ मिनटोंमें बता सकें।

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७०५१) की फोटो-नकलसे।

२५८. बहिष्कार और स्वदेशी

श्री बैप्टिस्टाने[३] यह दिखलानेकी चेष्टा की है कि बहिष्कार स्वदेशी ही नहीं बल्कि उससे बढ़कर है। अपने कथनके समर्थन में उन्होंने कहा है कि एक तो यह अपने देशमें बनी वस्तुओंके प्रयोगके लिए लोगोंको प्रेरित करके स्वदेशीका उद्देश्य पूरा करता है और दूसरे ब्रिटिश व्यवसायियों और उद्योगपतियोंकी आमदनीपर चोट करके एक असर पैदा करता है। श्री बैप्टिस्टाने यह भी कहा है कि बहिष्कारकी मेरी धारणा पूरी तौरपर धार्मिक है इस कारण ब्रिटिश जनताकी समझमें नहीं आती, जब कि बहिष्कारको वह सदासे पूर्णतः संवैधानिक एवं उचित साधन मानती आयी है।

जो लोग बहिष्कार और स्वदेशीको एक ही चीज बतलाते हैं, उन्होंने न तो स्वदेशीका तात्पर्य समझा है और न बहिष्कारका। स्वदेशी एक सनातन सिद्धान्त है,

  1. तात्पर्य "द पार्टीज़ ऑफ द फ्यूचर" शीर्षक लेखसे है। श्री अय्यरने गांधीजीसे इसे देख जानेका अनुरोध किया था।
  2. मूलमें यह गांधीजीके हस्ताक्षरोंमें है जो सम्भवतः पत्रकी फाइलकी ओर संकेत करता है।
  3. जोसेफ बैप्टिस्टा, राष्ट्रीय नेता जो होमरूल आन्दोलनसे सम्बद्ध थे।