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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है।" इसलिए स्वदेशी और बहिष्कार एक ही होना तो दूर, दोनोंमें जमीन-आसमानका अन्तर है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १४-१-१९२०

२५९. कांग्रेस में सुधार-प्रस्ताव

हमारी एक टिप्पणीमें[१] सुधारोंपर प्रस्तावके बारेमें विचार वैभिन्यका जो सारांश दिया गया है उसपर आश्चर्य नहीं करना चाहिए। समझौते कभी भी सभी पक्षोंको पूरा सन्तोष नहीं दे पाते। उनकी प्रकृति ही है कि उनसे पूरा सन्तोष नहीं मिलता किन्तु फिर भी वे सबको स्वीकार्य होते हैं। हमारी रायमें तो देशको कांग्रेससे वह मार्गदर्शन मिल गया जो वह उसे दे सकती थी। यदि कांग्रेसको देशकी सेवा करनी है तो उसका अधिकाधिक झुकाव एक दृष्टिकोणके बजाय अनेक दृष्टिकोणोंको प्रतिनिधित्व प्रदान करनेकी ओर होना चाहिए और वह भी न केवल विषय समितिमें बल्कि सार्वजनिक मंचपर। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि देशमें कई दल हैं। गरम और नरम दलके अलावा और भी दल हैं। उदाहरणके लिए गरम कहलानेवाले शिविरमें श्री कस्तूरी रंगा आयंगार, श्री दास और लोकमान्यके दल हैं। निश्चय ही उनका आरम्भ गरम दलके झंडेके नीचे हुआ था। परन्तु जैसे-जैसे उनमें मतभेद बढ़ेंगे, जो कि समयपर अवश्य होगा, तब प्रत्येक दल अपनी बातपर अड़ना शुरू करेगा। माननीय पंडित मालवीयजी गरम दलसे सर्वथा भिन्न प्रकारकी एक विचारधाराका प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार नरम दलमें भी निश्चय ही मतभेद हैं जो समय बीतनेके साथ कम होनेके बजाय बढ़ेंगे और कोई कारण नहीं कि एक सही संविधान द्वारा इन सब विभिन्न मतोंपर शांतिसे और कांग्रेसके मंचकी गरिमाके अनुकूल विचार-विनिमयके बाद जो मत या विचारधारा प्राप्त हो, कांग्रेस उसका प्रतिनिधित्व न करे। कांग्रेसके इतिहासमें पहली बार प्रतिनिधियोंके सामने एक ऐसे विषयपर खुले रूपसे तर्कपूर्ण बहस हुई जो देशके लिए अत्यन्त महत्त्व रखती है और पहली बार कांग्रेसके निर्णयकी ठीक जानकारीके लिए मतदान करानेकी सुविस्तृत तैयारी की गई। हमारी रायमें यह अपने आपमें एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। परन्तु इससे अधिक भी हुआ। निस्सन्देह चाहते तो दोनों पक्ष संशोधनपर मत विभाजन करानेका आग्रह कर सकते थे। हम श्रीमती बेसेंटके इस विचारको स्वीकार नहीं कर सकते कि लोकमान्यने अपने अनुयायियोंसे कहा था कि यदि श्री गांधी अपने संशोधनपर अड़े रहें तो वे उनके पक्षमें मत दें। यदि श्रीमती बेसेंटकी जानकारी सही भी हो तो भी श्री गांधीके लिए आग्रहपूर्वक

  1. उक्त टिप्पणियाँ यहाँ नहीं दी गई। इस विषयपर विस्तृत चर्चाके लिए देखिए "कांग्रेस", ११-१-१९२०।