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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं होता। कभी-कभी तो वह अपने व्यवहारमें क्षुद्रताका संकेत भी दे सकती है; फिर आजकल वह शरीरसे भी कमजोर हो गई है। इसलिए क्षुद्रताका जवाब महानतासे दे सकनेके लिए तुम्हें ईसाइयत उदारताकी सम्पूर्ण शिक्षाका सहारा लेना होगा। और हमारा व्यवहार सचमुच उदार तो तभी हो सकता है जब हम खुशी-खुशी वैसा करें। मैं कुछ ऐसे बन्धुओंको भी जानता हूँ जो बहुत विवश होकर ही उदारता बरतते हैं। उनकी उदारता में तो वही भाव होता है जो बलिवेदीपर चढ़नेवाले किसी व्यक्तिका होता है। दुःखमें प्रसन्न रहना, जो अपमान करे उसपर तरस खाना और उसकी इस कमजोरीके लिए उसे और अधिक प्यार करना वास्तविक उदारता है। लेकिन हो सकता है, हम उस स्थितिको प्राप्त न कर सकें। उस हालतमें उचित है कि हम इस दिशामें प्रयोग न करें। इसलिए प्यारी बच्ची अगर तुम्हें ऐसा लगे कि बा तुम्हें बहुत परेशान कर रही है तो मैंने उसके साथ जो निकटता स्थापित करनेको कहा है, वह मत करना। मैं नहीं चाहता कि किसी भी हालत में तुम अपनी आन्तरिक शांति और प्रसन्नताको खो बैठो। मैं चाहता हूँ तुम अपनी जीवनचर्याको ऐसा बनाओ जिससे आश्रममें तुम्हें अधिक प्रसन्नता, अधिक सुख और सत्यका अधिक अच्छा बोध हो। में तो चाहता हूँ, आश्रममें रहने के फलस्वरूप तुममें ईसाइयतकी और ज्यादा खूबियाँ आयें। कल पूरे दिन और रातको भी मैं तुम्हारे बारेमें ही सोचता रहा। मैं ईश्वरसे यही प्रार्थना करूँगा कि वह तुम्हें शरीर, मन, और भावना हर दृष्टिसे और अधिक स्वस्थ बनाये ताकि तुम उसकी ज्यादा सेवा कर सको।[१]

और में चाहता हूँ तुम दीपकसे मेल-जोल बढ़ाओं। वह एक दूसरा बड़ा प्रयोग है। तुम्हें महादेव बतायेगा कि वह कौन है, अधिक लिखनेका समय नहीं है।

यदि तुम चाहो तो इस पत्रको महादेवको भी पढ़वा देना। इसे लिखनेसे पहले मैंने काफी प्रार्थना की थी और यह उसीका परिणाम है। आज बिलकुल सुबह ही मैं तुम्हें उत्साह दिलानेके लिए दो शब्द लिखना चाहता था। बेचारे महादेवके बारेमें भी मेरी ऐसी ही भावना है। उसे तो बड़ा दुःसह भार ढोना है और ईश्वरकी कृपासे उसकी अन्तरात्मा भी इतनी जागरूक है कि उसे कभी कोई ढिलाई नहीं करने देती। लेकिन वह शीखता बहुत है, उसे दैवी तत्त्वकी पर्याप्त अनुभूति नहीं हो पाई है और इसीलिए वह चिन्ता करता है। उसकी मदद करना तथा खुद भी उससे मदद लेना।

अपनी मद्रास यात्राका अनुभव लिखना और बताना कि तुम्हें वहाँ कैसा लगा।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित मूल अंग्रेजी पत्रको फोटो-नकल तथा माई डियर चाइल्डसे।

  1. २० जनवरीको उत्तर देते हुए एस्थर फैरिंगने लिखा था कि बा को प्रसन्न करना कठिन काम है। वे मुझे सदैव एक अजनबीके रूपमें देखती हैं और हमारे बीच जो सीमा-रेखा है उसे पार करने में मैं अपने आपको भी असमर्थ पाती हूँ।