सत्याग्रहके सम्बन्धमें समितिके सदस्यों और श्री गांधीके बीच जो बहस हुई वह जानने योग्य है। इसलिए जहाँतक सम्भव होगा उसे हम ज्योंका-त्यों उद्धृत करनेका प्रयत्न करेंगे। सत्याग्रह खून-खराबीको रोकनेवाला एवं जनताके अधिकारोंकी रक्षा करने वाला उपाय है, यह बात इस बहसमें भली-भाँति बताई गई है।
- [गुजरातीसे]
- नवजीवन, १८-१-१९२०
२६४. पत्र : कप्तान अजमतुल्ला खाँको
[दिल्ली
जनवरी १८, १९२०][१]
मैं अपने वादेको भूला नहीं हूँ। में सब कागजात[२] देख गया हूँ और अब अपना निर्णय[३] देने को तैयार हूँ इन कागजोंको देखनेपर में जिस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ वह आपके खिलाफ जाता है और चूंकि इस सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करनेका मेरे पास और कोई साधन नहीं है, इसलिए मैं चाहूँगा कि अगर आप मुझसे मेरा निष्कर्ष बदलवानेके लिए कोई बात कहना चाहते हों तो अवश्य कहें। आपका उत्तर पाते ही यदि आपकी कही किसी बात के कारण दूसरे पक्षसे पूछताछ करनेकी जरूरत न पड़ी तो मैं अपना फैसला आपके पास भेजने के लिए तैयार रहूँगा। २० तारीखको में इलाहाबादमें रहूँगा। वहाँसे २१ को चलूँगा और लाहौर २३ को पहुँचूँगा। वहाँ कुछ दिन ठहरूँगा। इलाहाबादमें मेरा पता होगा—मार्फत माननीय पंडित मोतीलाल नेहरू, और लाहौरमें मुजंग रोड।
हृदयसे आपका,
- हस्तलिखित अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ७०५६) की फोटो-नकलसे।