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अपील : मद्रासके नाम

प्रति शाठ्यम्' में निहित सिद्धान्तके मुकाबले में अपना तीस वर्षका अनुभव रखता हूँ। सही नीति तो 'शठं प्रत्यपि सत्यम्' ही है।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-१-१९२०

२६७. अपील : मद्रासके नाम

मैं यहाँ मद्रास शब्दका प्रयोग उसके लोक-विदित अर्थ में करता हूँ जिसका तात्पर्य होता है समस्त मद्रास प्रेसीडेन्सीके सभी द्राविड़ी भाषाएँ बोलनेवाले लोग।

मैं देखता हूँ कि श्रीमती बेसेंटको कांग्रेसकी समस्त कार्रवाई मुख्यतः हिन्दुस्तानी में होनेसे निराशा हुई और इसलिए उन्होंने यह आश्चर्यजनक निष्कर्ष निकाल लिया कि वह राष्ट्रीय सभाके बजाय प्रान्तीय सभा हो गई है। श्रीमती बेसेंट के प्रति और भारतके प्रति उनकी सेवाओंके लिए बहुत ऊँचा आदर भाव रखता हूँ; भारतको स्वराज्य [होमरूल] देनेके विचारको लोकप्रिय बनानेमें जितनी सफलता उनको मिली है उतनी किसी दूसरे व्यक्तिको नहीं मिली। हममें से योग्यतम व्यक्ति भी, आयुमें उनसे बहुत कम होनेपर भी, भारतकी सेवा के लिए किये गये उनके उद्योग, उत्साह और संगठनके मामले में उनका मुकाबला नहीं कर सकते। उन्होंने अपनी प्रौढ़ावस्थाका सर्वोत्तम भाग भारतकी सेवामें खपाया है। भारतमें लोकमान्य तिलकके बाद लोकप्रियतामें उन्होंने जो दूसरा स्थान प्राप्त किया है वह अपने कामके बलपर ही। परन्तु इस समय उनके विचार शिक्षित भारतीयोंके एक बड़े तबकेको अस्वीकार्य होनेसे वे लोगोंमें कुछ अप्रिय हो गई हैं। और मुझे उनके इस विचारसे कि हिन्दुस्तानीके व्यवहारसे कांग्रेस प्रान्तीय हो जाती है, सार्वजनिक रूपसे मतभेद प्रकट करनेमें दुःख होता है। मेरी विनीत राय में उनका यह निर्णय एक गम्भीर भूल है। और मेरा कर्त्तव्य मुझे इसकी ओर उनका ध्यान खींचने के लिए विवश करता है। मैंने १९१५ से कांग्रेसके एकके सिवा समस्त अधिवेशनों में भाग लिया है। मैंने उसके कार्य संचालनके लिए अंग्रेजीकी तुलना में हिन्दुस्तानीकी उपयोगितापर विचार करनेके उद्देश्यसे इन अधिवेशनोंका विशेष रूपसे अध्ययन किया है। मैंने सैकड़ों प्रतिनिधियों और हजारों दर्शकोंसे बात की है और शायद किसी भी सार्वजनिक कार्यकर्त्ता जिनमें श्रीमती बेसेंट और लोकमान्य तिलक भी सम्मिलित हैं, की अपेक्षा अधिक विस्तृत क्षेत्रमें और अधिक बड़ी संख्या में लोगोंसे, जिनमें शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही हैं—भेंट की है। और मैंने सोच-विचारके बाद यही निष्कर्ष निकाला है कि हिन्दुस्तानीके सिवा—जो हिन्दी और उर्दूसे मिलकर बनी है—कोई भी दूसरी भाषा सम्भवतः विचार-विनिमय या राष्ट्रीय कार्यके संचालन के लिए राष्ट्रीय माध्यम नहीं बन सकती। मेरी विचारपूर्ण सम्मति यह भी है, जो विस्तृत अनुभवपर आधारित है, कि कांग्रेसकी लगभग समस्त कार्रवाई पिछले दो