पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१३
भाषण: मेरठकी सभामें

साधारणतक इस तरह नहीं पहुँच सकता जिस तरह वह उच्च वर्गोंमें प्रचलित होनेपर किसी देशी भाषाके माध्यमसे पहुँचता। उदाहरणार्थ श्री जगदीशचन्द्र बसुकी कृतियोंका बँगलासे गुजरातीमें अनुवाद करना, हक्सलेकी[१] कृतियोंको अंग्रेजीसे गुजराती में अनुवाद करनेकी अपेक्षा अधिक आसान है। मद्रासी लोग शेष भारतके लिए हिन्दुस्तानी सीखें इस कथनका क्या अर्थ है? इसका अर्थ केवल यह है कि मद्रासके वे समाजसेवी जो मद्रास प्रेसीडेंसीसे बाहर जाकर काम करना और राष्ट्रीय सभा-सम्मेलनों में भाग लेना चाहते हैं, उनको एक वर्ष एक घंटा रोज हिन्दुस्तानी सीखने में लगाना चाहिये। ऐसा प्रयत्न करनेसे कई हजार मद्रासी सालके अन्त तक कमसे कम कांग्रेस अधिवेशनोंकी कार्रवाईका रुख समझने लायक हिन्दुस्तानी सीख लेंगे। प्रेसीडेंसी में कई स्थानोंपर हिन्दी-प्रचार कार्यालय हैं, जिनमें हिन्दुस्तानी सीखनके इच्छुक लोगोंको निःशुल्क हिन्दुस्तानी सिखाई जाती है।

में श्रीमती बेसेंटसे, जो अब भी समय-समयपर "न्यू इंडिया" में हिन्दुस्तानी सीखने के बारेमें लिखती रहती हैं, अनुरोध करता हूँ कि वे मेरी इस अपीलका समर्थन करें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-१-१९२०

२६८. भाषण : मेरठकी सभा में[२]

जनवरी २२, १९२०

मेरठके नागरिकों और स्वयंसेवकों द्वारा किये गये अपने हार्दिक स्वागतके लिए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनेके अनन्तर गांधीजीने कहा कि आज भारतके सामने जितनी समस्याएँ मौजूद हैं उनमें खिलाफतकी समस्या सबसे अधिक महत्त्व रखती है, क्योंकि वह हमारे मुसलमान भाइयोंकी समस्या है। मेरे अंग्रेज और हिन्दू मित्र मुझसे पूछा करते हैं कि आप जैसे कट्टर हिन्दूको खिलाफतके मसलेमें इतनी अधिक दिलचस्पी क्यों है। उन सबको मेरा यही उत्तर हुआ करता है कि मैं और मेरे हिन्दू भाई भारतमें बसनेवाले सात करोड़ मुसलमान भाइयोंके साथ शान्ति और प्रेमसे रहना चाहते हैं। जबतक खिलाफतका मसला मुसलमानोंकी न्याय-विषयक धारणाओंके अनुसार हल नहीं हो जाता तबतक भारतमें शान्ति नहीं हो सकती। सरकार कुछ समयके लिए असन्तोषको

  1. प्रो॰ टॉमस हेनरी हक्सले (१८२५-१८९५); सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा लेखक।
  2. एक सार्वजनिक सभामें गांधीजीको खिलाफत कमेटी तथा मेरठके नागरिकोंकी ओरसे मानपत्र दिये गये। खान बहादुर शेख वहीदुद्दीनने सभाकी अध्यक्षता की। गांधीजी हिन्दीमें बोले। उनका मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।
१६–३३