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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दबा सकती है परन्तु जिनकी भावनाओंको गहरी चोट पहुँची है, वे सदा शान्तिके साथ नहीं रह सकते।

मैं अपने मुसलमान भाइयोंके साथ यह कहना चाहता हूँ कि इस प्रश्नके समाधानके लिए सत्याग्रहसे अधिक कारगर कोई और उपाय नहीं है। आप शरीर-बल द्वारा खिलाफत के प्रश्नको कभी हल नहीं कर सकते। लेकिन अगर आप सत्याग्रहको अपना लें तो आप स्वयं ही देखेंगे कि सफलताकी कितनी बड़ी सम्भावनाएँ हैं। यदि दक्षिण आफ्रिका भारतीय अपनी रक्षाके लिए हथियार उठा लेते तो उल्टे वे स्वयं ही उन हथियारोंके शिकार बन सकते थे। परन्तु वे धैर्यपूर्वक अपने व्रतपर डटे रहे।

खिलाफत की समस्याके बाद भारतकी स्वतंत्रताका सवाल लें तो वह सदासे स्वदेशी अपनाने की बातसे सम्बद्ध रहा है। भारतकी गुलामी उसी दिनसे शुरू हुई जिस दिन उसने अपनी देशी चीजोंका उपयोग छोड़ दिया। ईस्ट इंडिया कम्पनीका लक्ष्य कभी भी प्रदेशोंको जीतना न था। उसके उद्देश्य विशुद्ध रूपसे व्यावसायिक थे। परन्तु हम सब जाल में फँस गये। हम लोग लंकाशायर और मैनचेस्टर में तैयार की गई चीजोंका इस्तेमाल करते हैं। यदि हम लोग भारतको स्वतन्त्र करना चाहते हैं, तो हम सुधारोंके बलपर वैसा नहीं कर सकते, इंग्लैंडमें बनाये गये नियमोपनियमोंके बलपर नहीं कर सकते; यह तो हम स्वदेशी वस्तुओंका उपयोग करके ही कर सकते हैं।

हिन्दू-मुस्लिम एकताके प्रश्नके बारेमें उन्होंने श्रोतृ-समुदायसे यह बात स्मरण रखने को कहा कि पाखण्ड करने और चिकनी-चुपड़ी बातें कहने से सच्ची एकता प्राप्त नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि आप दूसरे लोगोंको तो धोखा दे सकते हैं, परन्तु ईश्वरको नहीं। यदि हिन्दू लोग चिकनी-चुपड़ी बातें कहकर मुसलमानोंको गोवध बन्द करनेपर राजी करना चाहते हों या इसी तरह मुसलमान खिलाफतके प्रश्नपर हिन्दुओंका सहयोग प्राप्त करनेकी सोचते हों तो बहुत सम्भव है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगे। ये तो अस्थायी वस्तुएँ हैं। जहाँतक आप लोगोंका अपना-अपना धर्म अनुमति दे वहाँ-तक आपको एक-दूसरे के हितके लिए अपने प्राण भी न्यौछावर करनेको तैयार रहना चाहिए।

भाषण समाप्त करनेसे पहले उन्होंने एक बार फिर मेरठके भाइयों और बहनोंको धन्यवाद दिया।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिव्यून, १२-२-१९२०