पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२६९. भेंट : एस॰ डब्ल्यू॰ क्लैम्जको

[मेरठ
जनवरी २२,१९२०]

श्री गांधी, क्या आप बतायेंगे कि पश्चिमके देश पूर्वके देशों और खासकर भारत के सर्वतोमुखी विकास में किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? श्री गांधीने इस प्रश्नका उत्तर सीधा न देकर घुमा-फिराकर दिया :

अभी तो भारत ऐसी स्थितिमें है जब उसे बहुत-सी सीखी हुई बातें भूलनी हैं; क्योंकि उसने ऐसा बहुत कुछ सीख रखा है जो बेकार है और जिसका कोई लाभ नहीं है। पश्चिमी दुनिया और विशेषकर आपके देशको देखकर मैंने दो महत्त्वपूर्ण बातें सीखीं हैं। पहली है सफाई और दूसरी स्फूर्ति। मेरा पक्का विश्वास है कि मेरे देशके लोग जबतक सफाई रखना नहीं सीखते तबतक उनका आत्मिक विकास नहीं हो सकता। आपके देशके लोगों में इतनी अधिक स्फूर्ति है कि आश्चर्य होता है। वैसे बहुत हदतक इस स्फूर्तिका उपयोग उन्होंने सांसारिक समृद्धि प्राप्त करनेके लिए किया है। अगर भारतीयों में भी उतनी ही स्फूर्ति हो तो सही दिशा देनेपर वह उनके लिए बहुत बड़ा वरदान होगी।

श्री गांधी, क्या आप यह बतानेकी कृपा करेंगे कि भारतमें जो चतुर्दिक राष्ट्रीय भावना दिखाई देती है उसको ध्यान में रखते हुए ईसाइयत किस प्रकार सबसे अच्छी तरह इसकी सेवा कर सकती है? उन्होंने उत्तर दिया :

हमें जिस चीजकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है 'सहानुभूति'। एक दृष्टान्त देता हूँ। उस समय में दक्षिण आफ्रिकामें था और वहाँ मुझ कुछ पाताल-तोड़ कुएँ खोदने थे। स्वच्छ जल-स्रोतकी खोज में मुझे बहुत गहरी खुदाई करनी पड़ी थी। हमारे देशभाइयोंके बारेमें जानकारी हासिल करनेके लिए दूसरे देशोंसे आनेवाले बहुत सारे लोग सिर्फ सतहको खरौंच कर रह जाते हैं। अगर वे सहानुभूतिके सहारे जरा गहरे उतरकर देखें तो उन्हें वहाँ जीवनका एक स्वच्छ और निर्मल प्रवाह दिखाई देगा।

और श्री गांधी, क्या आप यह बताने की कृपा करेंगे कि किस पुस्तक या व्यक्तिने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है?

उन्होंने स्पष्ट रूपसे स्वीकार किया कि वे जो कुछ मिल जाय सब पढ़ते जानेवाले पाठक नहीं हैं, बल्कि वे बहुत-सी उत्तम ढंगकी चीजें छाँटकर पढ़ा करते हैं। उन्होंने जिस क्रमसे पुस्तकोंकी चर्चा की वह इस प्रकार या—'बाइबिल', रस्किनकी कृतियाँ, टॉल्स्टॉयकी कृतियाँ। 'बाइबिल' के सम्बन्धमें बोलते हुए उन्होंने कहा :