ऐसे बहुत से अवसर आये हैं जब मुझे यह नहीं सूझता था कि कौन-सा रास्ता अपनाऊँ। लेकिन में 'बाइबिल' और विशेषकर 'न्यू टेस्टामेंट' की शरण में गया हूँ और उसके सन्देशसे मैंने शक्ति प्राप्त की है।
में यह जाननेको उत्सुक था कि हमारा मेरठ स्नातक संघ, जिसमें नगरके सुसंस्कृत से सुसंस्कृत शिक्षित व्यक्ति शामिल हैं, इस नगरके कल्याणके लिए किस प्रकार काम कर सकता है। मेरे प्रश्न के उत्तरमें उन्होंने बस एक बात कही—
मेहतर बनकर। और मेहतर कहने में मेरा मतलब इस शब्द के जितने भी अर्थ होते हैं, सबसे है। अगर इस संघके सदस्यगण बाहर निकलकर नगरको वास्तविक रूप से तथा नैतिक रूपसे भी स्वच्छ बनाने में हाथ बँटायें तो यह बहुत बड़ा काम होगा।
- [अंग्रेजीसे]
- यंग इंडिया, २५-२-१९२०
२७०. पत्र : मगनलाल गांधीको
लाहौर
मंगलवार [जनवरी २३, १९२० के बाद][१]
तुम्हें पत्र लिखनेका समय कहाँसे निकालूँ? फिर भी तुम्हारे पत्रकी राह तो देखता ही हूँ। वहाँ कातने और बुननेकी जो स्थिति है, उसके सम्बन्धमें लिखना। क्या तुमने कांतिलालको सरलादेवीके[२] पास भेजने की बात कही थी। क्या यह सम्भव है? यदि हाँ तो उसे लड़कों को पढ़ानके लिए भेज देना। दीपकसे कहना कि सरलादेवीको पत्र लिखे।
बापूके आशीर्वाद
- गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५७७९) से।
- सौजन्य : राधाबन चौधरी