पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५५२

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२७२. पत्र : नरहरि परीखको

लाहौर
[जनवरी २३, १९२० के बाद][१]

भाईश्री नरहरि

इसके साथ ही दीपकके लिए भी पत्र है। इसे पढ़ने के बाद उसे देना; वह इसे समझ पाया कि नहीं, यह देखना। सरलादेवीने तीसरी बार दीपकको अपनेसे दूर भेजा है। उनकी वृद्ध माताजी भी इससे प्रसन्न नहीं हैं। पंडितजी[२] भी इससे खुश हुए हैं, ऐसा नहीं कह सकता। लेकिन सरलादेवी जो करती हैं उसपर वे कोई आपत्ति नहीं करते। उनकी बड़ी इच्छा है कि यह बालक वहाँ रहकर चरित्रवान् तथा विद्वान् बने। इसमें हमसे जितनी बन पड़े उतनी सहायता करनी चाहिए। उसके संस्कृत या बँगला पढ़नेका विशेष प्रबन्ध करना। यदि मणीन्द्र बँगला पढ़ायेगा तो लड़का सहज ही सीख सकेगा। क्या वह सरलादेवीको बँगला में एक सुन्दर पत्र न लिखना चाहेगा अथवा यदि वह चाहे तो कभी अंग्रेजी तथा कभी बँगलामें पत्र लिख सकता है।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११८८५) की फोटो-नकलसे।

२७३. पत्र : बम्बई उच्च न्यायालय के पंजीयकको

लाहौर
जनवरी २४, १९२०

महोदय,

आपका इस माहकी—तारीखका कृपा पत्र[३] प्राप्त हुआ।

श्री महादेव देसाई और मेरे विरुद्ध आज्ञाकी सुनवाईके लिए अगली ३ मार्च मुझे अनुकूल पड़ेगी।[४]

आपका विश्वस्त,

गांधीजी स्वाक्षरोंमें अंग्रजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७०६३) की फोटो-नकलसे।
  1. ऐसा लगता है कि गांधीजीने यह पत्र २३-१-१९२० को लाहौर पहुँचनेके तुरन्त बाद लिखा था।
  2. पंडित रामभजदत्त चौधरी।
  3. लगता है यह पत्र गांधीजीके ४ जनवरी वाले पत्रके उत्तर में था।
  4. २७ फरवरीको गांधीजीने पंजीयकको फिर पत्र लिखा और अपना तथा महादेव देसाईंका वक्तव्य साथमें भेजा था। कैफियत तलबी अदिश की सुनवाई ३ मार्चको हुई और इसमें गांधीजी तथा महादेव देसाई उपस्थित हुए। न्यायाधीशोंने उन्हें अदालतको मानहानिका अपराधी करार दिया किन्तु कड़ी भर्त्सना के साथ आगेके लिए चेतावनी देकर बरी कर दिया।