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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साहस देगा। केवल एक बात याद रखो कि अपनी त्यागकी भावनावश तुम उस हदतक मत जाना जिसके कारण तुम्हारे मनमें स्वयं अपने और अपने आसपासके वातावरणके प्रति कटुता और निराशा पैदा हो जाये। यह एक ऐसा प्रलोभन है जिसका खतरा सभी कार्यकर्त्ताओंको होता है। वे आत्म-बलिदान करते चले जाते हैं और आखिर प्रतिदानके अभाव में वे हर चीज, हर व्यक्तिसे विरक्त हो जाते हैं। सच्चा त्याग वही होता है जब हम प्रतिदानकी अपेक्षा न करें। इस 'सैकिफ़ाइस' शब्दके मूल अर्थको समझ लेना उचित होगा। जैसा कि शायद तुम्हें मालूम होगा इसका अर्थ है 'पवित्रीकरण'। जब हम झुंझला उठते हैं या नाराज होते हैं तब हम न तो अपनेको और न ही औरोंको पवित्र बनाते हैं। बहुधा एक नैसर्गिक मुस्कानमें अधिक सेक्रिफाइस—पवित्रीकरण—होता है बनिस्बत तथाकथित ठोस सैकिफ़ाइसके। इन पंक्तियोंको लिखते समय मुझे मेरी और मैग्डेलेनके[१] दृष्टांत याद आते हैं। दोनों ही अच्छी थीं परन्तु बिना किसी दिखावेके केवल अपने स्वामीकी सेवामें उपस्थित रही वह शायद दूसरीकी अपेक्षा अधिक आत्मबलिदानी (सेल्फ संक्रिफाइसिंग) थी। और तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो। बा का या किसी भी अन्य व्यक्तिका मन जीतने के लिए अपनी आत्मापर अधिक बोझ न डालो। जैसे ही तुम्हें लगे कि उसके साथ तुम्हारी नहीं निभ सकती, तुरन्त अपने लिए अलग रसोईका प्रबंध अवश्य कर लो। ऐसा करके घनिष्ठ हुए बिना भी तुम उसकी सेवा तो कर ही सकती हो। वहाँ ऐसा कुछ मत करो जिससे तुम्हारी आत्मा या शरीरको थकान हो।

कृपया जिस किसी सुविधाकी तुम्हें जरूरत हो, चाहे खानेकी या अन्य प्रकारकी, वह मांग लिया करो। मगनलाल, इमाम साहब या किसीसे भी, जिससे तुम्हारी अधिक घनिष्ठता हो मदद मांग लिया करो।

हाँ, दीपक ठीक वैसा ही है जैसा तुमने उसके बारेमें लिखा है। मैं चाहूँगा कि तुम प्रेमपूर्वक उसको उसके दायित्वका ज्ञान करा दो और उसे अपनी पढ़ाईपर ध्यान देनेके लिए समझाओ। उसके पत्र-लेखनको जांचती रहो। देखो कि वह अपनी माँको प्रतिदिन विस्तृत सफाईके साथ पत्र लिखे।

मेरा हृदय इस दुःखमें[२] तुम्हारे साथ है। डेन्मार्क में अपने भाईके निकट होने की ऐसा तुम्हारी इच्छाको में समझ सकता हूँ। परन्तु तुमने एक भिन्न रास्ता चुना है—रास्ता जिसमें केवल किसी एककी ही सेवा करने की गुंजाइश नहीं है। ईश्वर तुम्हें इस कार्यको सम्पन्न करनेकी शक्ति दे।

महादेवके[३] बारेमें में तुमसे सहमत हूँ। वह अकारण ही अपने स्वास्थ्य के लिए चितित है। लोग उसका मूल्य उसके शरीरके कारण नहीं बल्कि उसकी आत्मशक्तिके

  1. गांधीजीने भूलसे "मार्था" की जगह मैग्डेलेन लिख दिया।
  2. एस्थरने लिखा था कि उसका भाई क्षय रोगसे पीड़ित है।
  3. महादेवपाने एस्थर फैरिंगसे कहा था कि इस तरह बीमार रहनेके कारण "मुझे आश्रम में रहनेका कोई अधिकार नहीं है।"