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पत्र : अखबारोंको

जैसा कि १९१४ में भारतीय विवाहोंको कानूनी मान्यता दिलानेके लिए किया गया था, कोई नया कानून ही क्यों न बनाना पड़े।

तारमें उठाया गया दूसरा मुद्दा मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये फैसलेसे सम्बन्धित है और उसका मतलब यह है कि भारतीयोंको भारतीय होने के नाते अवांछित घोषित किया जा सकता है—और सो कुछ अस्वच्छता या अनैतिकता आदिके कारण नहीं बल्कि इस कारणसे कि वे यूरोपीय व्यापारियोंकी स्पर्धा में आते हैं और उससे इन व्यापारियोंकी हानि होती है। अगर यह सिद्धान्त कायम रहता है तब तो दक्षिण आफ्रिकामें कोई भी किसी तरहका व्यापार नहीं कर सकता।

तारमें तीसरी बात, दक्षिण आफ्रिकामें नगरपालिकाओंकी सत्तामें वृद्धि करनेके लिए आयोगन जो सुझाव दिया है, उससे सम्बन्धित है। सामान्यतः तो नगरपालिकाकी सत्तामें वृद्धि होने की बात सबको अच्छी लगती है, लेकिन दक्षिण आफ्रिका में तथा साम्राज्य के अन्य संस्थानों में ऐसी वृद्धि होने का अर्थ इस विषयमें जो हुआ है उसे देखते हुए, यह हुआ कि नगरपालिकाको, इन संस्थानोंके पराधीन और मताधिकार से वंचित वर्गीपर अत्याचार करनेकी सत्ता सौंपना। इससे जिन लोगोंको मताधिकार प्राप्त न हो उन लोगोंके लिए नगरपालिकाकी सारी सत्ता सुखकर न होकर दुःखदायक साबित होगी। ट्रान्सवाल और फ्री स्टेटमें भारतीयोंको राजनैतिक अथवा नगरपालिका सम्बन्धी मताधिकार बिलकुल प्राप्त नहीं हैं। नेटाल और केपमें कुछ हदतक वे मताधिकारका उपभोग करते हैं, लेकिन वह इतना ज्यादा नहीं है कि जिससे नगरपालिकाओंकी कार्यवाहीपर अपना प्रभाव डाल सकें अथवा उनसे अपने मनोनुकूल बात करवा सकें।[१]

सर बेंजामिन रॉबर्ट्सन शीघ्र ही दक्षिण आफ्रिका के लिए प्रस्थान करनेवाले हैं। वहाँ भारतीयोंको उनका पूरा दर्जा दिलाने की बात तो अलग रही, अगर वे उन्हें संतोषके लायक ऐसा दर्जा भी दिलाना चाहेंगे जिससे वे उन प्रतिबन्धोंके अलावा, जो सभीपर सिद्धान्ततः और व्यवहारतः भी सामान्य रूपसे लागू होते हैं, अन्य सभी प्रतिबन्धोंसे मुक्त रहकर भूस्वामित्व और व्यापार आदि करनेका अधिकार प्राप्तकर रह सकें, तो इतनेमें ही उनकी कूटनीतिक प्रतिभा और न्यायके प्रति उनके दायित्व भावकी पूरी कसौटी हो जायेगी। आशा तो यही की जा सकती है कि भारत सरकार संघ सरकारसे स्पष्ट बात करेगी और जनता तथा अखबार उसके हाथ मजबूत करेंगे

[अंग्रेजीसे]
इंडिया, २७-२-१९२०
  1. यह अनुच्छेद अंग्रेजी सूत्रमें उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसका उक्त अनुवाद मूल लेखके गुजराती अनुवादसे किया गया है जो २५ जनवरी, १९२० के नवजीवनमें प्रकाशित किया गया था।