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पटरी से उतरे

मैं उसके दोष बता सकता हूँ उतना शायद अन्य लोग न बता सकें, ऐसी मेरी मान्यता है। मैंने चार वर्षोंमें ही जिस दृढ़ताके साथ "नौकरशाही" का मुकाबला किया है उतना अन्य लोगोंने कम ही किया होगा। लेकिन मेरे मन में क्रोध नहीं था इससे मैंने विवेक नहीं खोया।

यही दोष इस क्रोधी भाईको मुझमें दिखाई दिया है। आइये अब जरा उनके पत्रपर विचार करें। उनके सब आरोपोंमें अर्ध सत्य है और अर्ध सत्यको मैं डेढ़ [गुना] असत्य कहता हूँ क्योंकि वह दोनोंको भ्रममें डालता है। अर्ध सत्य बोलनेवाला उसकी पूर्णता की ओर नहीं देखता एवं सुननेवाला इस अर्ध सत्यको ही पूरा सत्य मान लेता है। यह सच है कि खेड़ा जिलेके लोगों द्वारा लगानका अधिकांश भाग चुका दिये जानेपर उसे ऐच्छिक घोषित कर दिया गया, लेकिन खेड़ा जिलेके लोगों द्वारा किया गया यह कार्य, अर्ध कार्य था। सरकारको अपनी "ना" को "हाँ" में बदलना पड़ा, उसमें निहित यह शेष भाग महत्त्वपूर्ण था। मैं मानता हूँ और मेरे साथ ही खेड़ाके हजारों स्त्री-पुरुष भी यह मानते हैं कि लोगोंमें जो जागृति आई, फिर अन्तमें ही सही, सरकारको हारकर हमारे हकमें निर्णय करना पड़ा—यह उसके महत्त्वपूर्ण परिणाम थे। सत्याग्रहमें व्यक्तिगत स्वार्थको अवकाश नहीं, यह बात यदि यह पत्र लेखक जानते होते तो उन्होंने जो आरोप लगाये हैं वे न लगाये होते।

वर्णाश्रम धर्मके विरुद्ध मैंने एक आन्दोलन चलाया है, यह पत्र लेखककी भ्रान्ति है; अस्पृश्यता वर्णाश्रमका एक अंग है, यह [बात] अर्ध सत्य है। मैं वर्णाश्रमको मानता हूँ, ऐसा मैं अनेक बार कह चुका हूँ। लेकिन भंगी आदिका स्पर्श न करना पाप है, यह बताकर मैंने दृढ़तापूर्वक वर्णाश्रम धर्मको अस्पृश्यताके दोषसे मुक्त करवानेका जो प्रयत्न किया है वह हिन्दू धर्मके प्रति मेरी निर्मल सेवा है। ऐसा करके मैंने हिन्दुओंका मन दुखाया है, यह भी अर्ध सत्य है। इसके पीछे मेरा उद्देश्य यही है कि इससे हिन्दुओंकी भावनाओंको कभी ठेस न पहुँचे। सत्याचरणका प्रचलन करते हुए मन दुखी हो तो उसे दुखाना ही धर्म है। उस उत्तरदायित्वसे में अथवा कोई अन्य व्यक्ति भी कैसे मुक्त हो सकते हैं।

लोकमान्य तिलककी दलीलके विरुद्ध मैंने सेनामें भरती अभियान शुरू किया, यह अर्ध सत्य है। मेरी इस प्रवृत्तिके वे विरोधी नहीं थे, अपितु उनका अभिप्राय यह था कि अगर [हमें] समानाधिकार मिल सकें तो वह प्रवृत्ति अधिक सुचारु ढंगसे चल सकेगी। इस तरह लोकमान्यके मूल विचारोंमें तथा पत्र-लेखक द्वारा अभिव्यक्त किये गये उनके विचारोंमें बहुत अन्तर है। में अहिंसाका पालन करनेवाला, भरती-अभियानके लिए कैसे निकल पड़ा; यह प्रश्न तो अनेक लोगोंके मनमें उठा था और इसका उत्तर मैं दे ही चुका हूँ। इस समय अधिक विस्तारमें न जाकर सामान्य दृष्टिसे देखनेपर मेरे इस कार्य को अच्छा कहा गया है, तथापि इस भाईको यह ठीक नहीं लगा। रौलट विधेयकके सम्बन्ध में तो अर्ध सत्य स्पष्ट ही है। लेकिन क्रोधीको कैसे समझाया जाये कि जो व्यक्ति मारे गये हैं, जिन्होंने मकान जला दिये हैं उनके दोषोंके लिये मैं उत्तरदायी नहीं हूँ।