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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उत्सुक हैं कि किसानको किस तरह मदद दी जा सकती है। इसका निर्णय तो अर्थशास्त्र के सिद्धान्तके आधारपर ही हो सकता है।

मेरी सलाह है कि आप युवक लोग इस कामको हाथमें ले लें। यह काम सरल है; इसमें कष्ट नहीं है। इसमें बहुत ज्यादा दिमाग लगानेकी भी जरूरत नहीं है; केवल अनुभवकी जरूरत है। यह उद्योग हमें अधिक स्वतन्त्रता देता है। सूत कातने- वालेको तीन आने रोजकी कमाई होती है; लेकिन जो व्यक्ति बुनाईका काम करता है उसे लगभग आठ आने मिलते हैं। बम्बईके मदनवाड़ी के बुनकरोंसे बात करनेपर मुझे मालूम हुआ कि उनमें से बहुत से लोग प्रतिदिन एकसे दो रुपये तक कमा लेते हैं। हमें इस उद्योगकी जरूरत है; इसका व्यापक प्रचार होना चाहिए। शिक्षित वर्गको भी थोड़ा-बहुत इसका अभ्यास करना चाहिए। इंग्लैंडमें जिस तरह प्रत्येक लड़का नौसेना- के कामको जानता है उसी तरह हमें भी यह काम सीखना चाहिए।

इसलिए, यदि भारतके लोग इस मन्त्रको समझ लें तथा अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझकर इसका पालन करें तो भारतकी आर्थिक स्थिति सुधर जायेगी तथा भुखमरी और रोगोंका नाश हो जायेगा। चूंकि आप लोग इस बातको अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप उसपर अमल करें।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १०-१०-१९१९

१४. रौलट कानून

श्री मॉण्टेग्यूने अपना वक्तव्य दे दिया है। उनका "विश्वास है कि रौलट कानूनने कार्यकारिणी परिषद्को जो अधिकार दिये हैं वे आवश्यक हैं।" बहुतसे मित्र पूछते हैं कि ऐसा वक्तव्य दे देनेपर भी क्या कानून रद होगा? मेरा जवाब है कि बंग-भंगके मामलेमें भी मि० मॉर्लेने कहा था कि वह "सुनिश्चित तथ्य" है, फिर भी वह रद कर दिया गया था।[१] इसी तरह रौलट कानून भी रद ही होगा। जनरल स्मट्सने बार-बार जोर देकर घोषणा की थी कि एशियाई पंजीयन अधिनियम[२] कभी रद नहीं किया जायेगा, फिर सन् १९१४में वह कानून भी रद हो गया था। इसलिए मुझे तो पूरा यकीन है कि रौलट कानून भी हट जायेगा, क्योंकि कष्ट सहनकी अर्थात् सविनय प्रतिकारकी शक्तिकें वारेमें मेरा विश्वास है कि वह पहाड़ जैसी कठि- नाइयोंको भी पार कर सकती है। मुझे तो अफसोस इस बातका है कि जिस कानूनका उसमें निहित अनिष्टकी दृष्टिसे और इस दृष्टिसे भी कि लोकमतने इतने कठोर शब्दों में उसकी निन्दा की है, जरा भी समर्थन नहीं हो सकता, उसका समर्थन करने श्री मॉण्टेग्यु सामने आये हैं। अपनी स्थितिकी सफाई देनेके लिए मि० मॉण्टेग्युको घटिया

  1. ब्रिटिश मालके बहिष्कारके उग्र जन-आन्दोलनके फलस्वरूप १९११ में बंगालका विभाजन रद कर दिया गया था।
  2. देखिए खण्ड ९, परिशिष्ट १