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२९०. पंजाबकी चिट्ठी—९

लाहौर
माघ सुदी ६ [जनवरी २७, १९२०]

दिल्ली

पंजाबका दौरा करनेके लिए मैं यहाँ फिर आ पहुँचा हूँ। अतः 'नवजीवन' के पाठकोंको पंजाब से पत्र लिखनेका अवसर फिर प्राप्त हुआ है।

पंजाब पहुँचने के पहले मुझे दिल्ली आदि कुछ स्थानोंमें रुकना पड़ा; पहले दो शब्द उनके विषय में कहूँगा।

मुझे आशा तो यह थी कि में बम्बई जाकर मित्रोंसे मिलकर, स्वदेशी सभा और सत्याग्रह सभाका काम देख-सुनकर, चरखा चलानेवाली बहनों और भाइयोंसे भेंट करनेके बाद, प्रयाग होते हुए लाहौर जाऊँगा।

किन्तु ईश्वरने या यों कहिए कि खिलाफत कमेटीने कुछ दूसरा ही निर्णय किया। हाजी-उल-मुल्क हकीम अजमलखाँ साहबने तार दिया कि खिलाफत के सम्बन्धमें वाइसराय महोदयके पास जो शिष्टमण्डल जानेवाला है उसमें मुझे भी शामिल होना है। इस शिष्टमण्डलकी खबर समाचारपत्रोंमें आ चुकी है। इसलिए उसके विषय में में कुछ नहीं कहूँगा। शिष्टमण्डल में हिन्दुओंके शामिल होनेसे उसका महत्त्व, उसकी शोभा विशेष हो गई थी। अली भाई [मुस्लिम] जन-समाजकी प्रीति अपने किन गुणोंके कारण प्राप्त कर सके हैं यह में देख सका। उनकी मीठी वाणी, हरएक काम करनेमें उनकी तत्परता, स्नेही स्वभाव, सबके प्रति सहानुभूति और कर्मठता ये ऐसे गुण हैं जिनसे हर एकका मन जीता जा सकता है। अली भाइयोंको देखकर मुसलमान भाइयोंका मन तृप्त हो जाता है। वे मुसलमान भाइयोंकी आँखें हैं और इस समय तो अपने प्रेमसे उन्होंने हिन्दुओंका मन भी हर लिया है।

कानपुर

दिल्लीसे मुझे प्रयाग तो जाना ही था। वहाँ पंडित मोतीलालसे मिलकर वापस लौट रहा था तभी मुझपर कानपुर जानेके लिए जोर डाला गया। कानपुरके नागरिकोंका आग्रह था कि वहाँ मुझे मात्र कुछ घन्टे ही रुकना होगा। स्वदेशी भण्डारका उद्घाटन करके मैं दूसरी गाड़ीसे वहाँसे विदा ले सकूँगा। मैं उन्हें निराश नहीं कर सका।

प्रयागसे दिल्ली जाते हुए कानपुर केवल चार घन्टेका रास्ता है। कानपुर मिलोंका केन्द्र है। वहाँकी जलवायु भी रास्ते में पड़ता है और प्रयाग मेल गाड़ीसे बम्बईकी तरह ही व्यापारका और कपड़ा बहुत अच्छी है। इस नगरमें स्वदेशी भण्डार