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पंजाबकी चिट्ठी—९

खोलनेका यह पहला ही प्रयत्न है और उसमें मुख्य हाथ हसरत मोहानी साहबका है। इस भण्डारके उद्घाटनके समय हजारों आदमी एकत्र हुए थे, उनके उत्साहकी सीमा नहीं थी।

एक दुःखद घटना

मेरे वहाँ पहुँचनेके पहले अली भाई भी पहुँच चुके थे। उनके सम्मानमें एक बहुत बड़ा जलूस निकाला गया था। उनकी गाड़ीका घोड़ा भड़का और लातें मारने लगा। भीड़ बहुत ज्यादा थी। गाड़ीके पास ही अब्दुल हफीज़ नामका एक हृष्ट-पुष्ट युवक खड़ा हुआ था। पिछले कुछ दिनोंसे वह सार्वजनिक सेवाका काम करने लगा था। घोड़ेकी लातसे उसकी छातीपर चोट लगी और वह गिर पड़ा। जिसके मरनेकी कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी ऐसा वह युवक क्षण मात्रमें चल बसा। अली भाई तुरन्त गाड़ीसे उतरे। उन्होंने एक खाट मँगवाई। उसके ऊपर युवकका शव रखा गया और दोनों भाइयोंने उसमें अपना कंधा दिया। कुछ दूरतक वे स्वयं उसकी इस शव- यात्रामें गये। बादमें कन्धा बदलनेपर अपने कामपर गये। जो जलूस खुशीका था वह इस घटना के बाद शोकका हो गया और शवके साथ गया। सारा दिन शोककी इस छायासे मलिन हो गया।

इस घटनाको घटित हुए चार घन्टे हुए होंगे कि इतनेमें में पहुँचा। मुझे यह दुःखद संवाद स्टेशनपर ही मिल गया था। मैंने माँग की कि मेरे लिए आयोजित जलूस स्थगित कर दिया जाये, मुझे सीधे भण्डार ले जाया जाये, और उद्घाटनकी क्रिया पूरी करानेके बाद वहाँ ले जाया जाये जहाँ अब्दुल हफीजका शव है। नगरके नेताओंने मेरा अनुरोध स्वीकार किया। भण्डारका उद्घाटन करने के बाद हम कुछ लोग भाई अब्दुल हफीजका शव देखनेके लिए जा पहुँचे। दृश्य अत्यन्त हृदयद्रावक था। उसकी हृष्ट-पुष्ट देह और सुन्दर चेहरा देखकर मुझे गहरा दुःख हुआ। आसपास खड़े हुए मुसलमान भाइयोंकी हिम्मतसे मैंने धैर्य धारण किया। वहाँ मैंने कोई रोनाधोना नहीं देखा। मानो घोर निद्रामें सोये हुए किसी भाईके आसपास बातचीत हो रही हो इस प्रकार वे लोग निर्भयतापूर्वक बातचीत कर रहे थे और मुझे सुना रहे थे कि युवककी मृत्यु कैसे हुई। इस दृश्यसे में बहुत प्रभावित हुआ। ऐसे अवसरपर हिन्दुओं में कितना रोना-धोना होता है इस बातकी याद आई। मनमें विचार आया कितना अच्छा होता यदि हम इस पापसे बचते। यदि हम मृत्युका डर छोड़ दें तो अनेक अच्छे कार्य कर सकते हैं। जिस धर्म के अनुयायियोंमें मृत्युका भय कमसे-कम होना चाहिए उन्हीं में वह सबसे ज्यादा है। यह विचार कई बार मेरे मनमें आया है और उससे बड़ी लज्जाका अनुभव हुआ है। आत्मा अमर है, देह क्षणभंगुर है, कोई कार्य ऐसा नहीं जिसका परिणाम न होता हो—बचपनसे यह सब हम सीखते हैं। तो फिर मृत्युका भय क्यों होना चाहिए? अब्दुल हफीजका एकमात्र पुत्र मेरे पास खड़ा हुआ था; वह भी निर्भयतापूर्वक बात कर रहा था। भगवान् अब्दुल हफीजकी आत्माको शान्ति प्रदान करे।