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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन शब्दोंको सुनते हुए और यह प्रतिज्ञा लेते हुए अली भाई तथा हसरत मोहानी साहब वहाँसे विदा हुए। अली भाइयों और मोहानी साहबको रात-दिन यही एक लगन है : खिलाफतके सवालपर किस प्रकार न्याय प्राप्त किया जाये? अली भाइयोंको सत्याग्रहपर पूरी श्रद्धा नहीं है। हसरत मोहानी साहब मुझसे यह कहते हुए गये कि "सत्याग्रह हमेशा चल सकता है या नहीं, यह तो में नहीं कह सकता। लेकिन में मानता हूँ कि इस कार्यके लिए आजके जमाने में सत्याग्रह जैसा दूसरा हथियार नहीं है। इसलिए मैं उसका प्रचार करूँगा।"

हसरत मोहानीको 'यह हमारा मैड [पागल] मुल्ला'[१] कहते हुए अली भाइयोंने अपने गले लगाया और विदा हुए। इस व्यक्तिको न मानकी इच्छा है न अपमानकी चिन्ता। गर्मी, सर्दी, दिन और रातका भेद किये बिना वे तो बस निरन्तर अपने कार्यमें ही मगन रहते हैं। मुसलमान समाजके पास ये तीन रत्न हैं और मुझे लगता है कि इन तीनों में मोहानी साहब सर्वश्रेष्ठ हैं। [अपने कार्यमें] तन्मयताकी दृष्टिसे हिन्दुओंमें भी उनसे बढ़कर शायद ही कोई हो, ज्यादा तो हैं ही नहीं और ये तीनों जैसे पक्के मुसलमान हैं वैसे ही पक्के भारतीय भी हैं। खिलाफतके फैसलेका और हिन्दुस्तानकी भावी शान्तिका आधार अधिकांशतः इन तीनोंकी समझदारीपर निर्भर है। में देख रहा हूँ कि उन्हें जो रास्ता सही मालूम होगा उसपर चलते हुए उनमें से कोई भी डरेगा नहीं।

[गुजराती से]
नवजीवन, १-२-१९२०

२९१. खिलाफत

आज खिलाफतका प्रश्न अर्थात् टर्कीके साथ सन्धिकी शर्तोंका प्रश्न सबसे महत्त्वपूर्ण बन गया है। हम लोग वाइसराय महोदय के अतिशय कृतज्ञ हैं कि असाधारण देर हो जाने तथा भिन्न-भिन्न प्रान्तोंके प्रधान अधिकारियोंसे मिलने की तैयारीमें विशेष व्यस्त रहनेपर भी उन्होंने संयुक्त शिष्टमण्डलसे बातचीत की। जिस परम सौजन्यसे उन्होंने शिष्टमण्डलका स्वागत किया तथा उनके उत्तरमें जो सौजन्य था उसके लिए भी हमें उनका आभारी होना चाहिए। सौजन्य सदा महत्त्वपूर्ण रहता है और उसका जितना महत्त्व इस अवसरपर है उतना कभी नहीं रहा होगा, पर इस संकटकालीन स्थितिमें केवल सौजन्यसे ही काम नहीं चल सकता। सत्य यह है, चिकनी-चुपड़ी बातोंसे पेट नहीं भरता। यह बात इस अवसरपर सबसे अधिक लागू होती है। उस सोजन्यकी ओटमें टर्कीको दण्ड देनेका निश्चय झलक रहा था। पर यह एक ऐसी बात है जिसे कोई मुसलमान सहन करनेके लिए तैयार नहीं है। युद्धसे जो परिणाम निकला है उसका श्रेय मुसलमान सैनिकोंको भी उतना ही है जितना कि अन्य सैनिकोंको। जिस समय टर्कीने मध्य यूरोपके देशों (जर्मनी आदि) का साथ देनेका निश्चय किया उस समय उन्हीं

  1. शिष्टमण्डल १९ जनवरीको वाइसरायसे मिला था।