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खिलाफत

भारतीय मुसलमान सैनिकोंको प्रसन्न करनेके लिए श्री एस्क्विथने[१] कहा था कि ब्रिटिश सरकार टर्कीपर हमलेका विचार नहीं रखती और टर्कीकी कमेटीके दुष्कृत्योंके लिए वह सुलतानको दण्ड देनेका विचार भी न करेगी। वाइसरायके उत्तरको इस वचनकी कसौटी पर कसने से वह केवल असन्तोषजनक और निराशापूर्ण ही नहीं बल्कि सचाई और न्यायसे रहित भी है।

ब्रिटिश साम्राज्य किससे बना है? इसमें ईसाइयोंका जितना हक है उतना ही हिन्दू और मुसलमानोंका है। धार्मिक तटस्थता उसका गुण नहीं है, या गुण है तो उसका कारण यह है कि वह ऐसा करनेके लिए बाध्य है। इसके अतिरिक्त कोई भी ऐसा उपाय नहीं जिससे यह शक्तिशाली साम्राज्य कायम रह सके। इसलिए मुसलमानोंके स्वत्वोंकी रक्षाका भार ब्रिटिश मन्त्रियोंके ऊपर उतना ही है जितना अन्य किसीके स्वत्वोंकी रक्षाका। मुसलमानोंकी ओरसे दिये गये उत्तरमें प्रयुक्त शब्दों में कहें तो ब्रिटिश मन्त्रियोंको इस प्रश्नको अपना समझकर उठाना होगा। यदि मुसलमानोंकी बात न सुनी गई और उनके मन्तव्योंकी हार हुई तो फिर वाइसरायका शान्ति परिषद् में मुसलमानोंके मन्तव्योंको भेजना न भेजना, उनपर जोर देना और न देना बराबर रहा। इससे लाभ क्या हुआ? इससे मुसलमानोंको यह सोचनेका पूरा हक है कि ब्रिटेनने उनके प्रति अपना कर्त्तव्य नहीं निबाहा है। वाइसरायका मत इस उत्तरकी पुष्टि करता है। वाइसरायने अपने उत्तर में—जो उन्होंने शिष्टमण्डलके सदस्योंको दिया था, कहा था—यदि टर्कीने मध्य यूरोपके देशों, जर्मनी आदिका साथ देनेकी भूल की है तो उसके लिए उसे कष्ट भोगना ही चाहिए। यह कहकर वाइसराय महोदय ब्रिटिश मन्त्रियोंकी ही रायको दोहरा रहे हैं। मुसलमानोंकी तरफसे दिये गये उत्तरका समर्थन करते हुए उनके साथ हम भी आशा प्रकट करते हैं कि यदि ब्रिटिश मन्त्रिमण्डलने कोई भूल की हो तो वह उसे सुधार लेगा और टर्कीके प्रश्नका इस प्रकार निपटारा करेगा जिससे मुसलमानोंका मन शान्त हो जाये।

मुसलमानोंकी माँगें क्या हैं? मुसलमान लोग चाहते हैं कि खलीफाका पद सुरक्षित रखा जाये और अरब तथा अन्य पवित्र मुस्लिम स्थानोंपर खलीफाका नियन्त्रण सुरक्षित रखा जाये; साथ ही टर्की राज्यके अन्तर्गत मुसलमानोंके अतिरिक्त जो जातियाँ निवास करती हैं उनके हितोंकी रक्षाका पूरा और समुचित प्रबन्ध कर दिया जाये तथा यदि अरबके निवासी स्वतन्त्र होना चाहें तो उन्हें स्वायत्त शासन दे दिया जाये। मुसलमानोंकी माँग इससे बढ़कर न्यायपूर्ण ढंगसे पेश नहीं की जा सकती थी। इस मॉंगके साथ न्याय है; ब्रिटिश मन्त्रियोंकी घोषणाएँ हैं और समस्त हिन्दुओं तथा मुसलमानोंका सर्वसम्मत मत इसका समर्थन करता है। जिस हकके पीछे इतना प्रबल समर्थन है उसे स्वीकार न करना या उसमें बड़ी कमी करना निरा पागलपन होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-१-१९२०
  1. हर्बर्ट हेनरी एस्क्विथ (१८५२–१९२८); उदारदलीय राजनीतिज्ञ; इंग्लैंडके प्रधान मंत्री, १९०८–१९१६।