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२९२. पत्र : फातिमा सुलतानाको[१]

[जनवरी २८, १९२० के बाद]

प्रिय महोदया,

आपके कागजात मुझे अहमदाबादसे यहाँ भेज दिये गये हैं। मैं उनको पढ़ गया हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि में इस मामलेमें आपकी मदद नहीं कर सकूँगा।

सब कागजात इस पत्रके साथ रजिस्ट्री द्वारा भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पेंसिलसे लिखी मूल अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७०७७) से।

२९३. पत्र : वी॰ टी॰ आगाशेको

लाहौर
जनवरी २९, १९२०

श्री वी॰ टी॰ आगाशे

पूना सिटी

प्रिय महोदय,
आपकी याचिका में पढ़ गया हूँ।
(१) क्या पेंशन पानेवाले यूरोपीयोंको बढ़ोतरी मिली है?
(२) क्या इंग्लैंडके सभी पेंशनयाफ्ता लोगोंकी पेंशन बढ़ाई गई है?

(३) क्या यहाँके पेंशनयाफ्ता लोग कुछ अन्य काम करके अपनी आमदनी बढ़ाने में सक्षम नहीं हैं और क्या ज्यादातर लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं?

ऊपरसे देखनेपर तो पेंशनयाफ्ता लोगोंका मामला ऐसा नहीं लगता जिसमें इन लोगोंको सार्वजनिक कोषसे अनिवार्यतः राहत मिलनी ही चाहिए।

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७०८०) की फोटो-नकलसे।
  1. यह शहजादी सुलतानाके २८ जनवरी, १९२० के पत्रके उत्तर में लिखा गया था। शहजादीने गांधीजी से प्रार्थना की थी कि सरकारसे मेरे लिए कृपया या तो कुछ जमीन या गुजर-बसरका माहवारी खर्चा दिला दीजिए जिससे कि मैं अपने जीवनके शेष दिवस शान्तिपूर्वक व्यतीत कर सकूँ।