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२९४. पत्र : सर जॉर्ज बान्र्जको

लाहौर
जनवरी २९, १९२०

प्रिय सर जॉर्ज बान्र्ज,

पूर्व आफ्रिकाकी स्थिति से सम्बन्धित आपके इसी २१ तारीख के पत्र[१] तथा उसमें दिये गये सहानुभूतिपूर्ण आश्वासनोंके लिए धन्यवाद। लेकिन मैं उक्त पत्रके एक वाक्यकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा। प्रस्तावित "अवांछित व्यक्ति अध्यादेश" के सम्बन्धमें आप कहते हैं, "किसी सरकारके, जिस देशमें उसका राज्य है, उस देशसे 'अवांछित' व्यक्तियोंको निकाल बाहर करनेके अधिकारपर कोई शंका नहीं की जा सकती।" एक सैद्धान्तिक मान्यताके रूपमें तो आपका उक्त कथन सर्वथा निर्दोष है, लेकिन पूर्व आफ्रिका के मामलेमें यह देखते हुए कि यह कानून भारतीयोंको ध्यान में रखते हुए बनाया गया है और 'अवांछित' शब्दको कृत्रिम अर्थोंमें ही लिया गया है, मैं ऐसा मानता हूँ कि प्रस्तावित कानून तथा उसके उपयोगके प्रति अपना विरोध प्रकट करना न केवल भारत सरकारकी अधिकार-सीमाके भीतरकी बात है बल्कि उसका यह कर्त्तव्य भी है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ४-२-१९२०

२९५. पत्र : एस्थर फैरिंगको

जनवरी २९, १९२०

रानी बिटिया,

मैंने दो दिन तुम्हें पत्र लिखे बिना गुजारे परन्तु तुम्हारे बारेमें सोचे या बात किये बिना नहीं। तुम्हारा स्वास्थ्य जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है। तुम शायद चपाती हजम न कर सको। तब तुम्हें साधारण पावरोटी लेनी चाहिए। वह तुम्हारे लिए अनसूयाबेन लाएगी। इसके बारेमें इमाम साहबको बताओ। सुबह के समय तुम दूधके साथ कुछ फल, और पावरोटी व नाश्ते में दही-चावल तथा सिर्फ उबली हुई थोड़ी-सी सब्जियाँ ले सकती हो। शायद दाल तुम्हें माफिक न पड़े। इसलिए थोड़ी-सी पावरोटी, थोड़ा चावल, थोड़ी-सी सब्जी और दही तुम्हारा नाश्ता हो सकता है। शामको भी यही रहेगा।

  1. स्पष्ट ही यह पत्र गांधीजीके १३ जनवरी, १९२० के पत्रके उत्तर में लिखा गया होगा।