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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आपकी रुचि हो सकेगी? मैं कोरे विद्वानों द्वारा लिखी हुई पुस्तकें नहीं चाहता। मुझे आपके सिवाय ऐसा अन्य कोई व्यक्ति नजर नहीं आता जिसमें विद्वत्ता और चरित्र दोनोंका सम्मिश्रण हो। इसीलिए आपकी शरण आया हूँ। इस तरहकी माँग मुझसे पहली ही बार नहीं की गई है। कुछ ऐसा चाहता हूँ कि पुस्तकको पढ़ते ही बालक समझ जायें कि हिन्दू धर्म क्या है।

आपका स्वास्थ्य ठीक रहता है, यह समाचार मुझे मिलता रहता है।

अंग्रेजी चरखेकी तसवीर मिल गई। उसे भेजनके विचारमें जो प्रेम समाया हुआ है, वह तसवीरकी अपेक्षा अधिक प्रिय लगा।

'नवजीवन' के लिए यथावकाश कुछ-न-कुछ लिखकर भेजेंगे ही। काशीजीका वर्णन, [हिन्दू] विश्वविद्यालयका परिचय इत्यादि। आपके काशीजी जानेसे पंडितजीको[१] बहुत संतोष हुआ है - पंडितजीने इस आशय के उद्गार मुझसे अनेक बार व्यक्त किये हैं। उन्हें सुनकर मुझे गर्वका अनुभव हुआ।

प्रोफेसर आनन्दशंकर ध्रुव
काशी

मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ७०८४) की फोटो-नकलसे।

  1. पंडित मदनमोहन मालवीय।