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परिशिष्ट

परिशिष्ट १

जी० एस० अरुण्डेलका पत्र

सैकिंड लाइन बीच
मद्रास
जुलाई २६, १९१९

प्रिय श्री गांधी,

चूंकि अब आपने सविनय अवज्ञा आन्दोलन अस्थायी रूपसे स्थगित कर दिया है, इसलिए आपसे हार्दिक अनुरोध करना चाहता हूँ कि आप अपना थोड़ा-सा ध्यान और शक्ति लन्दन में हमारे कई प्रमुखतम नेताओं द्वारा भारतको पर्याप्त मात्रामें राजनीतिक स्वतन्त्रता दिलानेके लिए किये जा रहे प्रयत्नोंको मजबूत बनानेमें लगायें।

मैं इस बातको भलीभाँति जानता हूँ कि विधि-पुस्तकमें से रौलट अधिनियमको निकलवाना आप अपना पहला काम मानते हैं। मैं इस बातसे पूरी तरह सहमत हूँ; इसके खिलाफ लगातार आन्दोलन करते रहना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्रेस अधिनियमके खिलाफ आन्दोलन करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। लेकिन चूँकि अभी आपने सविनय अवज्ञाको, जो कि संवैधानिक आन्दोलनका एक तरीका है, स्थगित कर दिया है, तब क्या हम सबका मिलकर निम्नलिखित उद्देश्योंसे एक बड़ा और सार्वजनिक आन्दोलन चलाना उचित नहीं होगा:

(१) भारतीय सुधार विधेयकमें संशोधन कराना।

(२) रौलट अधिनियम और प्रेस अधिनियमको रद कराना।

(३) भारतीय नागरिकोंके उन अधिकारों को संरक्षित कराने का आग्रह करना जो मूलतः मद्रास प्रान्तीय सम्मेलन में तैयार किये गये अधिकारोंके घोषणापत्रमें दिये गये हैं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगके १९१८ के अगस्त-सितम्बर में बम्बई में हुए विशेष अधिवेशनों में स्वीकार किये जा चुके हैं।

मेरा सुझाव यह नहीं है कि इस उद्देश्यके विभिन्न पहलुओंको, जिस क्रममें मैंने रखा है उसी क्रममें रहने दिया जाये; लेकिन मैं यह अवश्य कहना चाहता हूँ कि मेरी समझमें एकता भारतकी सबसे बड़ी आवश्यकता है और हम भरसक प्रयत्न करके उस एकताको स्थापित करने और कायम रखनेके लिए बाध्य हैं।

इस समय सेवा करने के दो मार्ग हैं - एक सत्याग्रहीका मार्ग और दूसरा उनका मार्ग जो भारतीय सुधार विधेयक में संशोधन कराने के प्रयत्नमें हैं। क्या हम फिलहाल