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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक नहीं हो सकते या कमसे कम ऐसा कोई काम नहीं ढूंढ सकते जिसे सब मिलकर कर सकें?

मैं भली प्रकार जानता हूँ, आपके कुछ अनुयायियोंका विश्वास है कि भारतीय सुधार विधेयकसे कुछ भी भला होनेवाला नहीं है। लेकिन क्या उसका उपयोग आगे बढ़ने के लिए करना सम्भव नहीं है? क्या हमें उन अनेक नेताओंके जो हमारी राष्ट्रीय विधान सभाओं और आन्दोलनका प्रतिनिधित्व करते हैं और जो इस समय लन्दन में इस विधेयकको उस देशके अनुकूल बनाने का जबरदस्त प्रयत्न कर रहे हैं जिसे लाभ पहुँचाना उसका उद्देश्य है, हाथ मजबूत करना उचित नहीं है।

मैं भारत की सेवा करनेके लिए बहुत उत्सुक हूँ और इस बातके लिए अत्यन्त व्यग्र हूँ कि कोई छोटेसे-छोटा भी अवसर हाथसे नहीं जाने देना चाहिए। इसीलिए मुझे इन बातोंको आपके सामने रखने में जरा भी संकोच नहीं होता। यदि हम इस नाजुक दौरमें भारतको एक बना सकें और समान लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए जोरदार प्रयत्न कर सकें तो यह भारतकी महानताका एक ज्वलन्त प्रमाण होगा। मैं जानता हूँ कि यह आपकी सहायता, आपके मार्गदर्शन और आपकी प्रेरणासे ही हो सकता है। एक दिन बातचीत में सर शंकरन नायरने मुझसे उन जरूरी संशोधनोंकी चर्चा की थी जिनके बाद भारतीय सुधार विधेयक वस्तुतः स्वीकार करने योग्य बन सकता है; और उनके विचारसे उक्त संशोधन कराना सम्भव है। श्री मॉण्टेग्यु से श्रीमती बेसेंटने एक लम्बी भेंट की और बादमें मुझे लिखा कि संशोधन कराने के लिए वातावरण स्पष्टतः आशापूर्ण है। क्या भारतमें हम इस दिशा में भी अपनी शक्तिका उपयोग नहीं कर सकते? क्या कमसे-कम कुछ महीने के लिए एक महान् आन्दोलन नहीं चलाया जा सकता? आप स्वयं भी उसके एक प्रमुख नेता रहेंगे।

एक सामान्य व्यक्ति के रूपमें में यह कहना चाहता हूँ कि अपने नेताओं में इतनी कम एकता देखकर हमें निराशा होती है। हमारी इच्छा है कि हम सब पूरे मनसे मिलकर कार्य करें। क्या भारतकी भलाईके लिए हमारा संगठित होकर कार्य करना जरूरी नहीं है? क्या दोनों गर्हित अधिनियमोंकी समाप्ति के लिए व भारतीय सुधार विधेयकके संशोधन और अधिकारोंकी घोषणाके लिए एक संयुक्त आन्दोलनके आधारपर यह संगठित कार्रवाई नहीं हो सकती? यह एक उत्तम और प्रेरणादायक कार्यक्रम है। मेरा विश्वास है कि एक भी देशभक्त भारतीय ऐसा नहीं होगा जो इसपर दृढ़ नहीं रहेगा। आपके सविनय अवज्ञा आन्दोलनको स्थायी रूपसे स्थगित कर देने से हम लोगों के लिए बिना किसी हिचकके एक साथ कार्य करना सम्भव होना चाहिए और मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप यह सोचें कि क्या हम कमसे कम इस समय एक होकर आगे नहीं बढ़ सकते।

सम्मानपूर्वक,

आपका सच्चा प्रशंसक,
जॉर्ज अरुण्डेल