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परिशिष्ट

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[अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, ६-८-१९१९

परिशिष्ट २
मुहम्मद अब्दुल अजीजका पत्र

प्रिय श्री गांधी,

पिछले दो महीने में भारतके विभिन्न प्रान्तोंके असंदिग्ध रूपसे प्रभावशाली और सम्माननीय जन नेताओंने खुले तौरपर और निजी पत्रोंमें इस देशके नामपर, जिससे आपको इतना प्रेम है और इस देशके लोगोंके नामपर, जिनकी सेवा करना आप अपने जीवनका सबसे बड़ा अधिकार मानते हैं, आपसे सविनय अवज्ञाका विचार स्थगित करने और फिर उसे हमेशा के लिए छोड़ देनेका अनुरोध किया है। मेरा विचार था कि आप इन हार्दिक और आदरपूर्ण विरोधोंसे प्रभावित होकर आत्म-पीड़नके द्वारा कानूनकी अवज्ञा करनेका विचार अन्त में हमेशा के लिए त्याग देने को मजबूर हो जायेंगे। भारतपर ब्रिटेनका आधिपत्य होनेके बाद इस देशके राजनैतिक इतिहासमें रौलट अधिनियम के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए आपने पहली बार आत्म-पीड़नको शस्त्र के रूप में प्रयुक्त किया है। किन्तु ऐसा लगता है कि यद्यपि आपने फिलहाल व्यापक कार्यक्रमके रूपमें सविनय अवज्ञाका विचार छोड़ दिया है, फिर भी आप स्वयं उसपर अमल करके एक उदाहरण प्रस्तुत करनेपर तुले हैं और यह बिलकुल भूल रहे हैं कि आम लोगोंको इस सिद्धान्तपर अमल करने की प्रेरणा देनेके लिए आपका उदाहरण सर्वाधिक शक्तिशाली और महानतम साधन सिद्ध होगा। आप भी यह कहते हैं कि आम लोग उसपर अमल करनेकी योग्यता नहीं रखते। मुझे डर है कि आपने अपनी जिस "हिमाचल-जैसी भूल" को अत्यन्त निःसंकोच भावसे स्वीकार किया था, वह आपपर अब भी हावी है और उसके प्रभावसे आप पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं। यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि आप जैसा समझदार व सूक्ष्म निर्णय करनेवाला व्यक्ति ऐसे मार्गपर क्यों अड़ा हुआ है जिसके कारण इस देशके लोगोंको बड़ेसे-बड़े व्यक्तिगत और सार्वजनिक कष्ट झेलने पड़े हैं। इस प्रकारके कष्टोंका इस देशके इतिहास में दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। आप कहते हैं, आप नहीं चाहते कि अन्य लोग सविनय अवज्ञापर अमल करें, क्योंकि वे इसके योग्य नहीं हैं। किन्तु आप स्वयं इसका अनुसरण करेंगे क्योंकि आप ही इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त और प्रशिक्षित व्यक्ति हैं। साधारण व्यक्तिके मनपर इसका क्या असर पड़ेगा? जब वह देखेगा कि ऋषि और गुरु मानकर जिसकी वह प्रशंसा करता और जिसे प्यार करता है, वह आगमें कूद पड़ा है तथा वह स्वयं उस आग से बाहर खड़ा है, तो उसका उन्माद और आवेश पहलेसे भी अधिक बढ़ जायेगा। तब क्या