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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह भी उस जलती आग में नहीं कूद पड़ेगा और तब क्या एक पतले-दुबले शरीरके ईंधनसे प्रज्वलित वह एक ही शिखा भयानक दावानलका रूप नहीं ले लेगी? आप एक सच्चे देशभक्त और अपनी मातृभूमिको सेवामें लगे हुए निष्ठावान कार्यकर्त्ता हैं इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इसपर विचार करें और ६ अप्रैलके उस दुर्भाग्यपूर्ण दिनके बाद जो कुछ हुआ है, उसे याद करके अपने आपसे पूछें कि क्या आप फिरसे समाजकी बुनियादको हिला देनेवाली एक आम उथल-पुथलके लिए जिम्मेदार बनेंगे। आप जिस मार्गका अनुसरण करना चाहते हैं उससे आम उथल-पुथल अवश्यम्भावी है।

मैं आपसे इस मसलेके एक और पहलू पर विचार करनेके लिए कहूँगा। मैं उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्तकी राजधानी पेशावरका रहनेवाला हूँ। जो पेशावर अब तक सर्वाधिक शान्त और क्षोभहीन रहा है मैंने उसके बाजारों और गलियोंमें व्याप्त उत्तेजना अपनी आँखोंसे देखी है। क्या आप मेरे इस कथनपर विश्वास करेंगे कि जिन लोगोंने इस उन्मादपूर्ण नितांत अराजकताका संगठन किया, वे आप द्वारा की गई सविनय अवज्ञाकी व्याख्याके आध्यात्मिक दर्शनको जरा भी नहीं समझते। साथ ही उन्हें उस रौलट अधिनियमकी जरा भी कल्पना या भीति नहीं है, जिससे शेष देश इतना विक्षुब्ध है। मेरे इस कथनसे कि सीमा प्रान्तके लोगोंको रौलट अधिनियमकी कोई कल्पना या भीति नहीं है, आपको और इस पत्रके कुछ पाठकोंको भारी आश्चर्य हो सकता है। लेकिन मैं अपनी बातको सीमा प्रान्तमें व्याप्त जीवनकी स्थितियोंके संक्षिप्त उल्लेखसे पुष्ट करूँगा। हम सीमा प्रान्तके लोगोंपर सीमा प्रान्त अपराध विनियम (फ्रंटियर क्राइम्स रेग्युलेशन) लागू होता है। उसकी धाराएँ उक्त रौलट अधिनियम की धाराओंकी अपेक्षा इतनी अधिक कठोर और निर्दयतापूर्ण हैं कि उनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जाहिर है कि जो लोग ऐसे कानूनोंके अन्तर्गत रहते हैं और यद्यपि मैं मानता हूँ कि वे शान्तिपूर्ण ढंगसे रहते हैं, फिर भी उन्हें एक ऐसे विधान के सम्बन्धमें कोई बड़ी भीति या किसी तरह की गम्भीर संवैधानिक आपत्ति नहीं हो सकती, जो अपेक्षाकृत अधिक नरम है और जो उनपर लागू नहीं हो सकता। तब रौलट अधिनियमपर इन लोगोंको पागलपनका यह प्रदर्शन क्यों करना चाहिए? कटु सत्य यह है कि यहाँ ऐसे स्वार्थी और देशभक्तिहीन लोगोंकी कमी नहीं है, जिन्होंने अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिए उस समयकी अशान्तिका दुरुपयोग किया और दूर बैठे उन लोगोंकी आँखोंमें जो इस बातको नहीं जानते थे कि सीमा प्रान्तमें इस आन्दोलनको सम्भव बनानेवाली व्यापक और छिपी शक्तियाँ हैं धूल झोंकनेके लिए एक नकली आन्दोलन खड़ा कर दिया। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि सीमा प्रान्तमें ६ अप्रैलसे पहले किसी राजनीतिक मामलेपर रोष प्रकट करने के लिए कभी कोई सभा नहीं हुई। दरअसल जब २० वर्ष पहले स्वयं सीमा प्रान्तको पंजाबसे अलग किया गया था तब और उसके बाद कभी किसीने विरोधमें अँगुलीतक नहीं उठाई, जब कि उसी समय बंगाल बंग-भंगपर क्रोधमें तमतमा रहा था। रौलट अधिनियम के बारेमें भी ६ अप्रैल से पहले इस शान्त और क्षोभहीन सीमा प्रान्तमें कोई