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परिशिष्ट

विरोध प्रकट नहीं किया गया था। लेकिन फिर भी अचानक ६ अप्रैलको ऐसा लगा कि पेशावर एक ऐसे कानून के खिलाफ चलाये गये अत्यन्त हिंसक आन्दोलनमें पड़ गया, जो सम्भवतः वहाँके लोगोंको छू भी नहीं सकता। अराजकताकी यह स्थिति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और निर्बाध रूपसे एक महीने तक चलती रही। यदि मैं उन सभी छिपी और स्वार्थी शक्तियोंका, जो प्रत्यक्षतः शान्तिका दिखावा करके अपना स्वार्थ साधनेमें लगी थीं, पर्दा फाश करनेकी कोशिश करूँ, तो मैं एक खतरनाक मार्गका अनुसरण करूँगा। लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि आप इस कहानीसे सबक लें और यह स्वीकार करें कि सविनय अवज्ञाके बारेमें जैसा आप उपदेश देते हैं, उसका कानूनोंके खुले और निर्लज्ज ढंगसे उल्लंघन करनेके सिवा और कोई अर्थ लगाना या समझाना लोगोंकी सामर्थ्य के बाहर है। यही कानून हमारे देशमें आन्तरिक शान्ति और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और इनसे ही भारतमें भविष्यके उदयकी आशा सम्भव हुई है। सम्भावना है कि हम भविष्य में स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकें और यह प्राचीन देश उन स्वशासी राज्योंके साथ, जो ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत राष्ट्र संघका निर्माण करते हैं, नितान्त समानताके आधारपर भागीदार हो जाये। अन्तमें, मेरा विश्वास है कि आप मेरी विनम्र प्रार्थनापर गम्भीरतासे विचार करेंगे और जल्दी ही सविनय अवज्ञा आन्दोलनको पूरी तरह और हमेशा के लिए छोड़ देने की घोषणा करेंगे ।

सचमुच आपका,
मु० अब्दुल अज़ीज़
बैरिस्टर, पेशावर

[अंग्रेजीसे]

पायनियर, २७-७-१९१९

परिशिष्ट ३
लाला लाजपतरायका पत्र

टेलीफोन : ग्रीले ६१७५
१,४०० ब्राडवे
न्यूयॉर्क
जून २०, १९१९

प्रिय महात्माजी,

हमारी मातृभूमिके उत्थान के लिए आप जिस महान् आन्दोलनका नेतृत्व कर रहे हैं, मुझे खेद है कि मैं उसमें उन परिस्थितियोंके कारण जो मेरे नियन्त्रणमें नहीं हैं, भाग लेने में असमर्थ हूँ। फिर भी मैं बताना चाहता हूँ कि आपने जो शानदार रुख अपनाया है, उसकी और आपकी उच्च देशभक्तिकी में भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ।

मैं अभी भारतसे दूर हूँ और इस अवधि में मैंने बहुत कुछ सीखा है, बहुत-कुछ भुलाया है। मेरे लिए यह अवसर ऐसा नहीं है कि मैं अपनी निष्ठाको पूर्ण रूपसे