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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अभिव्यक्त करूँ। लेकिन इतना मैं कहना चाहता हूँ कि यद्यपि मैं आपके सोचनेकी प्रक्रिया पूरी तरह सहमत नहीं हूँ, फिर भी हमें क्या करना चाहिए, इस बारेमें आपके विचारोंसे काफी हदतक सहमत हूँ। भारतमें बल-प्रयोगसे क्रान्ति करने के प्रयत्नों की निरर्थकताके बारेमें जितना विश्वास मुझे अब है, उतना पहले कभी नहीं था। मेरी राय में आतंकवाद व्यर्थ ही नहीं बल्कि पापमय भी है। सब तरहके खुले कार्यपर प्रतिबन्ध लगाने और उसके लिए दण्ड देनेकी सरकारकी इच्छाको देखते हुए गुप्त प्रचार और गुप्त समितियों का कुछ औचित्य हो सकता है; लेकिन आगे चलकर उनकी परिणति उनमें भाग लेनेवालोंके नैतिक पतनमें होती है। मेरा विश्वास है कि जो राष्ट्र स्वतन्त्रताके लिए कष्ट सहनेको तैयार नहीं, वह न तो उसका अधिकारी है और न उसे प्राप्त ही कर सकता है। जब मैं ऐसा कहता हूँ तब मेरा आशय स्वतन्त्रताकी प्राप्तिके लिए कष्ट सहनेसे है, उसके अभाव के कारण कष्ट सहने से नहीं है। भारतमें लोग स्वतन्त्रताके अभाव में बहुत कष्ट सहते हैं, लेकिन स्वतन्त्रताके लिए पर्याप्त कष्ट नहीं सहते। हमने अबतक स्वतन्त्रताके अधिकारी बनने के लिए कोई विशेष कार्य भी नहीं किया है और लोगोंको यह समझानेके लिए कि स्वतन्त्रता क्या है और भी कम कार्य किया गया है। स्वतन्त्रताकी प्राप्तिके लिए हमने अबतक जो त्याग किये हैं या कष्ट सहे हैं; वे सफलता पानेकी दृष्टिसे सर्वथा नगण्य हैं।

इसलिए आपके प्रचारके आम उद्देश्योंसे मेरी पूरी सहानुभूति है। शायद में सत्याग्रही बनने की पूर्ण प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर न कर पाऊँ। लेकिन जब में भारत लौटूंगा, विशुद्ध स्वदेशीकी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर कर दूंगा।

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इस देशमें रहनेवाले अधिकांश भारतीय युवकोंके हृदयोंमें आपके लिए बहुत सम्मानका भाव है। उनमें से एक युवकने, जो कभी हरदयालके पक्के अनुयायी थे, मुझे इस प्रकार लिखा है :

हमें इस समय महात्मा गांधी जैसे नेताओंकी ही जरूरत है। हम सशस्त्र प्रतिरोध नहीं चाहते। हम निष्क्रिय प्रतिरोध भी नहीं चाहते। हम कोई अधिक ऊँचा उपाय चाहते हैं, और वह उपाय वही है जिसकी वकालत महात्माजी कर रहे हैं। मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि हरदयालने जिन तरीकोंकी वकालत की है, वे दुनियाके हर भागके लिए उपयुक्त और विवेकयुक्त नहीं कहे जा सकते। हम हत्या, आगजनी और आतंकवाद से बचना चाहते हैं। भूतकालमें हमारे आन्दोलनकी बुनियाद रक्तपातपर रखी गई थी; अब हम उससे ऊब चुके हैं। लेकिन अब उसकी बुनियाद न्याय और व्यक्तिगत स्वतन्त्रतापर रखी जानी चाहिए, जिससे वह भविष्यमें ठोस बनी रहे। हरदयाल अपने विचारोंके कारण नीचे गिर गये हैं। मुझे आशंका है कि उनका प्रभाव हमारे उन कुछ नौजवानोंपर पड़ सकता है, जिन्होंने उनका अन्धानुसरण किया है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे नेता ऊँचे उठनेके बजाय नीचे गिर रहे हैं। इस समय भारतको गांधी-जैसे नेताओंकी सख्त जरूरत है। वे अपने सिद्धान्तोंके पक्के हैं और उनके सिद्धान्तोंको संसारके प्रायः हर भागमें लागू किया जा सकता है।