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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

माँग तो नियम विरुद्ध है, लेकिन वचन दिया कि वसूली मुल्तवी करने के मामलेपर विचार किया जायेगा। इसीके परिणामस्वरूप उन्होंने उपर्युक्त आदेश निकाले थे। इसके बाद यह मामला गुजरात सभाने अपने हाथ में ले लिया। सभाका प्रधान कार्यालय खेड़ा जिलेके बिलकुल बाहर अहमदाबादमें है। उन्होंने स्थानीय अधिकारियोंकी उपेक्षा करके याचिकाएँ और तार सीधे स्थानीय सरकारको भेजे और फसलकी स्वतन्त्र जाँच करनेकी माँग की; यह था उनके कार्य संचालनका ढंग। लगभग जनवरीके शुरूमें उन्होंने खेड़ाके ग्रामीणोंको एक गश्ती पत्र भेजा जिसमें कहा गया था कि बम्बई सरकारसे कोई जवाब नहीं मिला। इसलिए जिन किसानों की फसल पूरीकी-पूरी मारी गई है या जिनकी फसल सामान्य फसलसे तिहाईसे ज्यादा नहीं हुई है, वे लगान अदा न करें। इसपर स्थानीय सरकारने १६ जनवरी, १९१८ को अपनी पहली प्रेस विज्ञप्ति जारी की और उसमें तथ्य सामने रखते हुए लगान अदा करनेके विधिवत् आदेशको न मानकर लगान चुकानेसे इनकार करनेके किसी भी प्रयत्नके विरुद्ध किसानोंको चेतावनी दी।

२. श्री गांधीने खरीफकी विवादास्पद फसल कट जाने और खेतोंसे उठ जानेके बाद फरवरी के महीने में इस मामलेमें दिलचस्पी लेनी शुरू की। किन्तु उनका मत था कि इस वर्ष फसल कितनी हुई है और साधारण फसलके वर्ष में वह कितनी होती है, किसानोंसे यह पूछकर विश्वसनीय तथ्य प्राप्त किये जा सकते हैं। उनका यह भी ख्याल था कि किसी गाँवकी औसत फसलका निर्धारण करनेके लिए रबीकी ही नहीं; कपासकी फसलको भी नहीं गिनना चाहिए। उन्होंने इन आवेदनोंपर स्वयं कमिश्नर और कलक्टरसे विचार-विमर्श किया। श्री गांधीने स्वयं जिन गाँवोंकी जाँच-पड़ताल की थी कलक्टरने उन्हींके आसपासके गाँवोंकी फसलके अनुमानोंकी फिर जाँच की। श्री गांधीको इस जाँच में उपस्थित होनेका न्यौता दिया गया और एक बार वे उपस्थित भी हुए। यह निर्णय किया गया कि पहलेके दिये गये आदेशमें हेरफेर करने का कोई आधार नहीं है और इसकी सूचना श्री गांधीको २० मार्च, १९१८ को दे दी गई।

३. उसके दूसरे दिन गुजरात सभाने श्री गांधीकी अध्यक्षतामें एक प्रस्ताव पास किया कि सत्याग्रहका सहारा लिया जाये। श्री गांधी २२ मार्चको सत्याग्रह आरम्भ करने के लिए चल पड़े। उन्होंने खेड़ा जिलेके किसानोंकी एक बड़ी सभा करके सलाह दी कि यदि उनको पक्का विश्वास है कि फसल सामान्य फसलके मुकाबले एक तिहाईसे कम हुई है तो उन्हें लगान देने से इनकार करके सत्याग्रह करना चाहिए और सरकार जिस तरह चाहे उसे लगान वसूल करने देना चाहिए। कहा जाता है सभामें इस आशयकी एक प्रतिज्ञापर "छोटे-बड़े" कोई २०० किसानोंने हस्ताक्षर किये। यह अभियान मार्च और अप्रैल में जारी रखा गया। अखबारोंकी खबरोंके अनुसार उस प्रतिज्ञापर २१ अप्रैलतक २,३३७ किसानोंके हस्ताक्षर हो चुके थे। उसपर होनेवाले हस्ताक्षरोंकी यही ज्यादासे ज्यादा संख्या है।

४. इस बीच जिलेमें बड़े पैमाने पर लगान वसूल किया जा रहा था। १२ अप्रैलको नडियाद में एक भाषण में कमिश्नरने घोषित किया कि कमसे कम ८० प्रतिशत