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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मामलतदारों को कुछ हिचक हुई, जिसका परिणाम यह हुआ कि कलक्टरने २२ मई, १९१८ को उन्हें फिर वही आदेश भेजा, लेकिन तबतक कुल लगानका ९३ प्रतिशत वसूल हो चुका था। आदेशकी इस पुनरावृत्तिका असर हुआ और नडियादके मामलतदारने श्री गांधीजी से भेंट करनेके बाद ३ जूनको उत्तरसंडा गाँवके लोगोंको सूचित करने के लिए गाँव के कार्यकर्ताओंको यह आदेश भेजा कि जो दे सकते हैं, वे लोग तत्काल लगान अदा कर दें। लेकिन "उन लोगोंपर जो दरअसल गरीब हैं और जिनकी गरीबी साबित हो चुकी है, लगानकी वसूली के लिए दबाव नहीं डाला जायेगा और उनका लगान अगले साल के लिए मुल्तवी कर दिया जायेगा।" आदेश गाँवके लोगोंको पढ़कर सुना दिया गया और तब श्री गांधीने लोगोंसे लगान अदा करनेका जोरदार अनुरोध किया। इसके बाद जल्दी ही आन्दोलन खत्म हो गया। कलक्टर और गांधीजीके बीच फिर भी जिनकी जमीनें पहले ही जब्त कर ली गई थीं उन लोगोंपर कलक्टर द्वारा किये गये चौथाई जुर्माने के बारेमें पत्र-व्यवहार होता रहा। इस सवालके बारेमें भी पत्र-व्यवहार किया गया कि जिन लोगोंको इस वर्ष लगान चुकता करने के लिए अन्ततः बहुत गरीब करार दिया गया है, उनका लगान "मुल्तवी" माना जायेगा या "अनधिकृत बकाया"। इस प्रश्नपर कलक्टरका खयाल था कि इस बारेमें सचमुच गलतफहमी हुई है और उनकी सिफारिशपर सरकारने अनमने होकर बकाया लगानको मुल्तवी लगान मान लिया। जुलाईके अन्ततक कुल लगानका ९८.५ प्रतिशत वसूल हो चुका था।

७. इस आन्दोलनके औचित्यके प्रश्नको समझने के लिए यह ध्यान में रखना जरूरी है कि भारत में ब्रिटिश शासनके कई वर्षोंकी अवधिके लिए लगान नियत करनेकी प्रणाली जान-बूझकर अपनाई गई थी। समय-समयपर लगान नियत करने के पीछे सिद्धान्त यह है, "उसे इस प्रकार निश्चित किया गया है कि सामान्य रूपसे उतने परिवर्तनकी गुंजाइश, मौसम परिवर्तनोंका जितना अनुमान लगान-निर्धारक अधिकारी लगा सकते थे, रख ली गई थी। किन्तु चाहे फसल बुरी हो या अच्छी, सिद्धान्ततः लगान हर साल चुकता होना ही चाहिए।" (भारत सरकारके राजस्व व कृषि विभाग के २५ मार्च, १९०५ के प्रस्तावका अनुच्छेद ५)। इसलिए भारत सरकारने यह स्वीकार करते हुए भी कि व्यवहारके समय लगान वसूली में हेरफेरकी गुंजाइश होना जरूरी है, यह भी कहा कि इस प्रस्ताव में जिस प्रणालीका अनुमोदन किया गया है उसमें लगान वसूली करते समय किसी प्रकारकी ढोल-ढाल या असावधानी नहीं होनी चाहिए। वह यह भी नहीं चाहती कि लगानको मुल्तवी और माफ करने की प्रस्तावित प्रणाली, "राजस्व प्रशासनका नित्य अंग" ही बन जाये। इसे रियायती कार्रवाईके रूपमें मान्यता दी गई थी न कि अधिकार के रूप में। यह रियायत केवल अपवादस्वरूप ऐसे कठिन संकटोंके लिए थी, जिनमें बन्दोबस्तके अनुसार किये गये करारमें ढिलाई करना मुनासिब और जरूरी लगे। यह भी कहा गया कि "किसान से यह उम्मीद करना कि वह बुरी और अच्छी फसलोंके साधारण उतार-चढ़ाव को बरदाश्त कर लेगा, ठीक और उचित ही है।" उक्त सिद्धान्त बम्बई नियमों की भूमिका में दुहराये गये हैं। बम्बईके नियमों में से पहला नियम कलक्टरको यह अधिकार देता है (ध्यान रहे, निर्देश नहीं देता) कि जब स्थानीय जांच-पड़तालसे