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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की क्षतिके सम्बन्धमें कलक्टरके अनुमानको, जिसके आधारपर लगान मुल्तवी करनेके आदेश जारी किये जाते हैं, चुनौती देनेका, अपनी इच्छानुसार उनमें परिवर्तन कराने या निष्पक्ष जाँचकी मांग करनेका अधिकार है। फसलोंका अनुमान लगाने की जिम्मेदारी कलक्टरपर रहनी चाहिए। असल में यह माननेका कोई कारण ही नहीं है कि खेड़ा में फसल के अनुमान इतनी लापरवाहीसे लगाये गये थे कि उनके विरुद्ध संगठित आपत्ति करना उचित था। बल्कि राजस्व वर्षमें और जब सत्याग्रह पूरे जोरपर था तब भी लगानकी वास्तविक वसुलीमें जो प्रगति हुई उससे तो इसके विपरीत निष्कर्ष ही निकाला जा सकता है। इसके आंकड़े अनुच्छेद ४ और ६ में पहले ही दिये जा चुके हैं।

८. अभी यह विचार करना बाकी है कि आन्दोलन असल में कितना सफल रहा। गुजरात सभाकी अपनी २१ मार्च, १९१८ की बैठकमें अपनी उस सलाहको, जो उसने गश्तीपत्रके रूपमें जनवरीके आरम्भमें पहले प्रचारित की थी, फिर एक प्रस्तावकी शकलमें रखना पड़ा। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शुरू-शुरूमें कमसे-कम श्री गांधीके हस्तक्षेपसे पहले, आन्दोलन कोई बहुत प्रभावोत्पादक नहीं था। इसके अलावा घरेलू मतभेद समाप्त करनेके लिए वाइसराय महोदयकी अपील निकलने तक स्थानीय सरकार तथा उसके स्थानीय अधिकारियोंने अबतक अपनाये गये अपने कड़े रुखमें किसी तरहकी नरमी नहीं दिखाई। जिस सीमातक नरमी दिखाई गई, वह उपर्युक्त अनुच्छेद ४ में बता दी गई है। मुख्यतः इतनी ही नरमी दिखाई गई कि लगान वसूलीके लिए स्वीकार्य कठोर तरीकोंकी जगह नरम तरीके अख्तियार किये गये। यह किसी भी तरह श्री गांधीकी माँगोंके सामने झुकना नहीं था। कमिश्नरका यह निर्देश कि उन किसानोंपर जो वास्तवमें लगान चुकानेकी स्थितिमें नहीं हैं, कोई दबाव न डाला जाये, सामान्य संकट के समय लगान मुल्तवी करनेके किसी खास नियमके अन्तर्गत नहीं आता; तथापि यह बम्बई अहाते में की जानेवाली लगान वसूलीकी परम्पराके अनुसार था; बादमें बकायेको इस "अनधिकृत बकाया" से "मुल्तवी लगान" में तबदील करना (देखिए ऊपर अनुच्छेद ६) केवल एक असाधारण रियायत थी। फिर भी आन्दोलन जिस उद्देश्यकी प्राप्तिके लिए कृतसंकल्प था, यह रियायत उसका एक छोटा-सा अंशमात्र थी। आन्दोलनका मुख्य उद्देश्य यह था कि या तो फसलके नुकसानका अनुमान लगानेके लिए निष्पक्ष जांच कराई जाये या सरकार किसानों द्वारा लगाये गये अनुमानको ठीक मान ले और उसके आधारपर लगान मुल्तवी किया जाये। इनमें से कोई भी माँग स्वीकार नहीं की गई; यहाँतक कि उपर्युक्त रियायत जिन खास मामलोंमें दी गई, उनके बारेमें भी यह निर्णय सरकारी अधिकारियोंने ही किया कि कौन किसान इतने गरीब हैं कि लगान चुकता नहीं कर सकते या कौन ऐसे हैं कि कर सकते हैं। और इसका पता लगाने के लिए कदम उठाने से पहले ही कि कौन चुकता करने योग्य है, कौन नहीं श्री गांधी अपना आन्दोलन समाप्त करनेके लिए राजी हो गये और उन्होंने कानून मानने से इनकार करनेवाले अल्पसंख्यकोंसे लगान जमा करवाने में सक्रिय भाग लिया। यह सच है कि यहां भी मालूम पड़ता है, श्री गांधी पहले गलतफहमीके शिकार हो गये थे; क्योंकि कहते हैं, ३ जूनको उत्तरसंडाकी सभा में आन्दोलन खत्म करने की घोषणा करते हुए उन्होंने किसानोंसे