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परिशिष्ट

कहा कि "सरकारने यह फैसला उनपर छोड़ दिया है, कि कौन किसान लगान न दे।" लेकिन यह वक्तव्य अधिकृत नहीं था और १ जुलाई, १९१८ को कमिश्नरने निश्चित रूपसे यह घोषणा की कि "जिन लोगों को यह रियायत मिलेगी, वे अत्यन्त गरीब किसान होंगे और वे कलक्टर और उनके मातहत अधिकारियों द्वारा निर्दिष्ट व्यक्ति होंगे, किसी बाहरी व्यक्ति या संस्था द्वारा निर्दिष्ट नहीं।"

९. उपर्युक्त बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि खेड़ाके आन्दोलनके लिए कोई उचित कारण नहीं था और उसका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १२-८-१९१९

परिशिष्ट ५
"पैनसिलवेनियन" का पत्र

प्रिय श्री गांधी,

जन-साधारणकी भलाईके लिए आपने जो काम किया है, उसकी ओर ऐसे अनेक लोगों का ध्यान गया है जिनके बारेमें आप कुछ भी नहीं जानते। फिर भी सभी अच्छे कामोंकी प्रशंसा तो होती ही है। आपने कुछ बहुत ऊँचे आदर्श चुने हैं, कुछ भूलें भी की हैं। आपके कार्योंमें जो अत्यन्त प्रशंसनीय काम हैं उनकी पृष्ठभूमिमें ये भूलें और भी अधिक स्पष्ट दिखाई देती हैं। मैं जिस महान् गणतन्त्रका नागरिक हूँ, वहाँ आप कभी नहीं गये हैं। यदि मैं कुछ बातें जिनपर मैं विचार करता हूँ, गंभीरतापूर्वक विचारार्थ आपके सामने रखूं तो आप कृपया मुझे क्षमा करेंगे। सविनय अवज्ञा आन्दोलनको फिलहाल स्थगित कर देनेके बारेमें आपने हालमें ही जो पत्र प्रकाशित कराया वह सामयिक है। वह वास्तव में बहुत दूरदर्शितापूर्ण है, किन्तु माफ कीजिए, उस पत्र में रौलट विधेयकोंकी बहुत खिलाफत की गई है। चाहे कुछ भी क्यों न हो, रौलट विधेयक वापस लिये जाने चाहिए - यही इसका आशय है। ठीक है न?

गांधीजी, मैंने ज्यादातर यही देखा है कि जब कोई आदमी किसी बातका विरोध इस प्रकार करता है, जिस प्रकार आप कर रहे हैं, तो वह अपने उद्देश्यको ही नष्ट कर देता है। यदि आप सरकार हों और कोई आदमी आपसे कहे कि वह आपकी एक बातको छोड़ बाकी सब बातें माननेके लिए तैयार है तो आप उससे कहेंगे कि वह उस एक बात को भी मान ले। तब यदि वह कहे कि वह उसे नहीं मानेगा तो आप कहेंगे कि उसे वह माननी ही होगी। गांधीजी, आप जानते हैं कि आदमी बना ही इस तरहका है। मैं आपको एक सुझाव देनेका दुःसाहस कर रहा हूँ, मगर मैं जानता हूँ कि आप उसे पसन्द नहीं करेंगे। सुझाव यह है कि आप रौलट विधेयकोंके खिलाफ अपने संघर्षको बन्द कर दें। अन्ततः इससे अधिक प्रगति होगी।