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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ईसाई लोगों में प्रचलित एक किस्सा आपको सुनाता हूँ। इंग्लैंड के एक देहाती गिरजे में प्रार्थना करने के लिए आनेवालोंमें से कुछ लोग चुपकेसे एक बाजा अपने साथ ले आये। गिरजे में उपस्थित अन्य लोगोंको यह बात बहुत बुरी लगी, वास्तवमें वह उन्हें बहुत खटकी। ऐसा लगा मानो आसपासके सभी लोगोंकी बाजेसे सम्बन्धित विवादमें दिलचस्पी पैदा हो गई है। तभी बाजा लानेवालोंमें से एकने क्षमा-याचना करते हुए कहा : "मुझे पता नहीं था कि बाजा लानेसे आप इतने नाराज होंगे, इसलिए मैं इसे बाहर ले जानेके लिए बिलकुल तैयार हूँ।" इसके जवाबमें विरोधी पक्षके प्रमुख पादरीने उठकर कहा : "अगर आप अपनी भूल इस तरह महसूस कर रहे हैं, तो मैंने उसको यहाँ रखने पर जो आपत्ति की है उसे मैं प्रसन्नतापूर्वक वापस लिये लेता हूँ।" अभी कुछ दिन पहले एक मित्रने मुझसे सवाल किया कि क्या हमारा महान् गणराज्य भी ऐसी निर्दयता दिखायेगा, जैसी पंजाब में अभियुक्तोंके साथ बरती जा रही है। मैंने उसे यह जवाब दिया संयुक्त राज्य अमेरिकामें मेरा एक मित्र है। पेशेके लिहाजसे वह दन्त चिकित्सक है। लड़ाईके दिनोंमें एक दिन वह बहुत बोल रहा था और सरकारकी आलोचना कर रहा था। उसे अदालत में पेश होनेके लिए कहा गया। वहाँ उसे ३,००० रु० जुर्माने की सजा दी गई। जहाँतक मुझे पता चला है उसने वह जुर्माना दे दिया और तबसे वह बहुत नहीं बोलता। जहाँतक मैं जानता हूँ, उसके दोस्त महसूस करते हैं कि उसने अन्तमें बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य किया।

गांधीजी, मैं यह मानता हूँ कि सविनय अवज्ञा बहुत अच्छा, बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण तरीका है और आपको तथा आपके मित्रोंको उसे जारी रखना चाहिए। किन्तु मेरा पहला विनम्र सुझाव यह है कि आप उसमें जरा-सा संशोधन कर लें। वह उपाय इतना अच्छा है कि उसे छोड़ना नहीं चाहिए। उसमें भलाई करने की इतनी क्षमता है कि उसे चुपचाप एक तरफ नहीं रख दिया जा सकता। लेकिन मैं चाहूँगा कि उसमें संशोधन हो। उसका वर्तमान रूप ऐसा है कि उसमें बुराई पैदा करनेकी क्षमता भी बहुत है। आप उसमें संशोधन कर लें। बुराईको निकालकर उसमें अच्छाई ज्यादा भर दें। यह उपाय आपको कैसा लगेगा? उसके दो बड़े हिस्से कर दें, एक विधि-सम्बन्धी और दूसरा निषेधसम्बन्धी। आरम्भ निषेधसे करें जो आप जानते हैं, सदा ही अत्यन्त प्रभावकारी होता है। अब हम विचार करते हैं।

१. बुराईका प्रतिरोध

१. आप झूठ बोलने का सदा विरोध करें। सत्याग्रहमें ऐसे लोगों को शामिल करें जो कभी झूठ न बोलें। इस प्रकार और लोगोंको भी ऐसा करनेकी प्रेरणा दें। सत्याग्रही प्रतिज्ञा करें कि वे किसी भी दशा में झूठ नहीं बोलेंगे। आप उन्हें सिखाएँ कि मनमें झूठ भरकर स्वतन्त्र रहने से सच बोलकर जेल जाना बेहतर है।

२. आप सभी प्रकारकी घूसखोरीका विरोध करें। आप सत्याग्रहियोंसे यह वादा करवायें कि उन्हें घूसखोरीके विरुद्ध इतनी दृढ़तासे मोर्चा लेना चाहिए कि वे घूस लेने और देनेवाले हर बदमाशकी पोल खोल देना अपना कर्त्तव्य समझेंगे। सत्याग्रहियों को यह भी सिखाएँ कि अपना कर्त्तव्य पूरा करनेसे पहले घूस देने के लिए मजबूर करनेवाले