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परिशिष्ट

व्यक्तिसे यह कह दें कि वे उसकी पोल खोल देंगे। भले ही घूस देनेवाले अर्थात् घूस देनेके लिए मजबूर होनेवाले व्यक्तिको जेल हो जाना पड़े। कानूनके सामने घूस लेनेवाले और देनेवाले दोनों ही समान हैं। यदि बीसियों सत्याग्रही, लोगोंको इस प्रकार सचेत करते रहेंगे तो हम सबके जीवन कालमें एक नैतिक क्रान्ति आ जायेगी। यह शर्मनाक बुराई इतनी बढ़ गई है कि इसकी ओरसे आप आँखें नहीं मूंद सकते।

३. आप धार्मिक भिक्षा-वृत्तिका विरोध करें। गांधीजी, धर्मके नामपर ३० लाख भिखारी देशका अन्न खाते हैं और बदले में उसे कुछ नहीं देते। यह विचार ही मुझे घृणास्पद लगता है। आप इसका विरोध करते रहे हैं, यह बहुत अच्छी बात है। हम यहाँ सहमत हैं। जबतक लोग इन्हें भीख देते रहेंगे तबतक ये माँगते रहेंगे। आप सत्याग्रहियोंको उदार दानी बनायें, लेकिन वे ऐसे लोगोंको दान न दें जो हट्टे-कट्टे होनेपर भी किसी तरहका काम करनेसे इनकार करते हैं। इससे स्थितिको सुधरने में अत्यधिक सहायता मिलेगी।

४. आप दासताका विरोध करें। गांधीजी, यदि इस समय भारतमें कोई ऐसा व्यक्ति है जो जनमत तैयार कर सकता है, तो वह आप ही हैं। यदि आप लोगोंको यह महसूस करा सकें कि पुरुषों, स्त्रियों और बच्चोंको इतनी कम मजदूरीपर नौकर रखना शर्मनाक है जिससे कि वे हमेशा गुलामीकी हालत में बने रहें, तो यह बहुत ही अच्छी बात होगी। क्या आपने कभी सुना है कि एक युवा व्यक्ति अपने विवाहके लिए अपने मालिकसे ५० रुपये उधार लेता है और एक टिकट लगे कागजपर मजदूरी करके कर्ज चुकानेका लिखित वादा करता है, जब कि मजदूरीमें उसे खाना और सालमें १० रुपये मिलते हैं। मैंने ऐसे कई किस्से सुने हैं, लेकिन वे किस्से मेरे अपने देशके नहीं हैं। मैं इसको गुलामी ही कहूँगा। किसी भी सत्याग्रहीको ऐसा कृत्य करके अपराधी नहीं बनना चाहिए। नौकरके साथ दयापूर्ण व्यवहार हो तो भी यह उस बेचारेके लिए दयालुतासे भरी एक किस्मकी गुलामी ही है।

५. आप शराबके व्यापारका विरोध करें। यह एक जघन्य व्यापार है और भले लोग इस बुराईके खिलाफ लड़ने में अपना समय और धन अच्छी तरह खर्च कर सकते हैं। इस लड़ाई में मेरे देशने मार्ग दिखाया है। गांधीजी, क्या आप जानते हैं कि अमेरिकामें इस संघर्ष में विजय कैसे मिली? ४०-५० वर्ष पहले ही बड़ी संख्या में अच्छे लोगोंने शराबबन्दीके सवालसे खिलवाड़ करना छोड़कर काम करनेका फैसला किया। उन्होंने सभाएँ कीं, भाषण दिये तथा पुरुषों, स्त्रियों और बच्चोंसे मद्य-त्यागकी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर करवाये। स्कूलोंके भवनों में शराब न पीनेवालों और शराब पीनेवालोंकी तस्वीरें टॅगवाई; स्कूलोंमें पढ़ाई जानेवाली पुस्तकोंमें मद्य-त्याग से सम्बन्धित पाठ शामिल करवाये और इस बारेमें सब अखबारोंमें जानकारी छपवाई। गांधीजी, कुछ वर्षों बाद ये स्कूली बच्चे स्त्री और पुरुष बन गये। इन लोगोंके मनोंमें पक्का विश्वास था कि यह बहुत बड़ी बुराई है। इन्हीं लोगोंने इस बुराईको मेरे देशसे निकाल बाहर किया है। इन स्त्री-पुरुषोंने इस महान् गणराज्यको शराबके बदनाम व्यापारसे मुक्त कराया है। लेकिन इस बारे में अन्तिम कानून बनने से पहले वे बार-बार हारे, फिर भी हारनेके

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