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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण कांग्रेसके किसी भी सदस्यने अपने पदसे कभी इस्तीफा नहीं दिया। अधिक नहीं; वे अपने विचारोंपर दृढ़ रहे और फिर मतदाताओंको सन्तुष्ट करनेके लिए तैयारी करते रहे। अपने उद्देश्य में असफल होनेपर त्यागपत्र देने, उदास होने और समस्या से भागने के तरीकेको अमरीकी लोग काम करनेका ठीक तरीका नहीं समझते।

जैसा कि मैं समझता हूँ, सत्याग्रहको विधि-सम्बन्धी और निषेध- सम्बन्धी दो भागों में बाँटनेसे बुराईका प्रतिरोध पहले आता है, यह मैं ऊपर बता चुका हूँ।

२. नागरिक सहायता

१. आप स्वदेशी उद्योगोंका सुझाव पहले ही दे चुके हैं। यदि लोग अपनी जरूरतका ज्यादातर कपड़ा खुद बुन लें, तो यह बहुत ही अच्छा होगा। यदि किसान जिस प्रकार अनाज गाहकर भूसेसे गेहूँ अलग करते हैं, उसी प्रकार अपनी कपास स्वयं ओट लें, तो यह बहुत अच्छा होगा। यदि यह काम पूरे उत्साहसे किया जाये तो विदेशी मालके खिलाफ आवाज उठानेकी जरूरत ही नहीं होगी। ८० प्रतिशत लोग उन्हीं चीजोंको खरीदेंगे जो सबसे ज्यादा सस्ती होंगी। आप चीजोंका उत्पादन करें और जीत आपकी होगी। खेड़ामें, जहाँ आपने कुछ समय बिताया है, कितने गांवोंमें बढ़ई हैं, कितने गांवोंमें लुहार हैं, 'शिंपी'[१] हैं? गांवोंमें ज्यादातर तो किसान और खेतमजदूर ही हैं।

२. किसी भी देशकी तरक्कीके लिए अच्छी सड़कें जरूरी होती हैं। लेकिन क्या इस मामलेमें भी हम सरकारको दोष दें? मैं ऐसा नहीं करूँगा। आप उन लोगोंको सत्याग्रही बनायें जो अच्छी सड़कों और स्वस्थ गाँवोंके हिमायती हों। आप हर किसानको सत्याग्रही बनायें, उससे कहें कि वह जब भी सड़कपर अपनी बैलगाड़ीमें जाये, हर बार अपने साथ कुल्हाड़ी, कुदाली या फावड़ा ले जाये और यह प्रतिज्ञा करे कि वह हर फेरेमें एक बार रुकेगा और उसे जहाँ सड़क बहुत ज्यादा खराब मिलेगी उसे ठीक कर देगा। मेरे विचारमें शहरोंके भले लोग इस प्रकारकी प्रतिज्ञा करनेवाले किसानोंको औजार खरीद देनेके उद्देश्यसे धन एकत्र करेंगे। गांधीजी, कुछ प्रयत्न करिये। आप जरा कल्पना तो करें कि बरसात में देहाती रास्तोंकी क्या हालत होती है!

शिक्षा

३. गांधीजी, आप सबके लिए प्राथमिक शिक्षाकी व्यवस्था करें। लेकिन इस बारेमें भी वही बात है। लोग कहते हैं कि सरकार कानून बना दे। सरकारको इस तरह परेशान क्यों किया जाये? आप जनताके आदमी हैं, जनता से कहें। आप छात्रोंसे प्रतिज्ञा करायें कि छुट्टियों में हर छात्र एक-एक निरक्षर व्यक्तिको पढ़ना सिखायेगा। प्रत्येक छात्रको, जबतक उसके पिताके घरमें नियुक्त एक भी व्यक्ति अनपढ़ है, शर्म महसूस करनी चाहिए और मंजूर करना चाहिए कि अपने देशके सामान्य कल्याणके प्रति उसकी दिलचस्पी नहीं है। लेकिन लोगोंका तो यह कहना है कि अपढ़ व्यक्ति ही अच्छा नौकर होता है। खराबी यहीं है; सर लिंकनका कहना है कि कोई देश

  1. दर्जी।