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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निहित है। आप सब वकीलोंको सत्याग्रही बनायें ताकि उन्हें यह महसूस हो कि किसी मुकदमेको सम्मानपूर्वक लड़ना और हार जाना जर्मन तरीकेसे जीत जानेसे कहीं बेहतर है। लिंकनने कहा था : मेरा जीतना जरूरी नहीं है, सचाईपर दृढ़ रहना जरूरी है।

६. जब अटलांटाका अपना प्रसिद्ध भाषण देते समय बुकर टी० वाशिंगटन अपनी लोकप्रियताकी चरम सीमापर थे। श्रोताओं में विरोधी और समर्थक दोनों थे और दोनों पक्षोंको परिणाम क्या होगा इसका निश्चय नहीं था। उन्होंने जो बातें कहीं उनमें एक यह भी थी : "विशुद्ध सामाजिक बातों में हम अँगुलियोंकी तरह पृथक हो सकते हैं किन्तु आपसी प्रगतिके सब आवश्यक मामलोंमें हाथकी तरह एक हो सकते हैं।" उनका यह कहना था कि उस विशाल सभा भवन में भारी संख्यामें उपस्थित श्रोता, जिनमें उच्च-वर्गके लोग भी थे, खड़े हो गये और उन्मत्त होकर हर्षध्वनि करने लगे। 'अंटलांटा कांस्टीट्यूशन' के सम्पादकने, जो 'न्यूयॉर्क वर्ल्ड'के संवाददाता श्री जेम्स कीलमैनके पास बैठे थे, मुड़कर उनसे कहा : "यह भाषण एक नैतिक क्रान्तिका आरम्भ है।" गांधीजी, इसमें सूत्र रूपमें सब कुछ आ गया है। यदि आप अपनी सारी शक्ति एक नैतिक क्रान्ति उत्पन्न करने में लगा दें तो आपको नैतिक और राजनैतिक दोनों क्षेत्रोंमें प्रत्यक्ष प्रगतिको देखनेका अवसर मिलेगा। यदि आप अपनी शक्ति राजनीतिक क्रान्तिमें खर्च करेंगे तो आपको दोनोंमें से एक भी देखने को नहीं मिलेगी। मुझे तो ऐसा ही लगता है।

७. आप सत्याग्रहमें यह बात भी शामिल करें कि जितना हम समाजसे लें उससे अधिक उसे दें। यह देशके प्रति प्रेमके लिए, मानवताके प्रति प्रेमके लिए या ईश्वरके प्रति प्रेमके लिए किया जा सकता है। मैं फर्ग्युसन कॉलेजके एक योग्य प्राध्यापकका उदाहरण देता हूँ। उन्हें योग्यताके विचारसे आज ८०० रुपये प्रति मास वेतन मिलना चाहिए लेकिन वे १५० रुपये प्रति मास लेते हैं। मैं समझता हूँ कि वे नैतिक क्रान्तिको दिशामें तेजी से बढ़ रहे हैं। मैं स्वयं ५० से अधिक ऐसे सत्पुरुषोंको जानता हूँ जो बाजार-दरकी अपेक्षा कहीं कम वेतन ले रहे हैं। वे आम लोगोंकी भलाई के लिए यह त्याग कर रहे हैं। इसमें आध्यात्मिक नेतृत्वके लिए एक संकेत निहित है। यह आचरण आम आचरणसे भिन्न है, प्रचलित आचरणसे भी बहुत भिन्न है। साधारण जन जितना मिल सकता है उतना ले लेता है और फिर उससे ज्यादाकी मांग करता है। भारत दुनियाको आध्यात्मिक जीवनकी, दूसरोंकी भलाईके लिए त्यागकी कुछ बातें बता सकता है; लेकिन यह कार्य सविनय अवज्ञाके किसी भी तरीके से सिद्ध नहीं हो सकता। यह पहले बुराईके प्रतिरोधसे और दूसरे नागरिक सहायताके तरीकेसे सिद्ध हो सकता है, इसका मतलब है ऐसी नैतिक क्रान्तिसे सिद्ध हो सकता है जिसमें सविनय अवज्ञाका धोखा और प्रचार नहीं होता बल्कि जो विश्वासी और दूरदर्शी लोगोंके लिए एक बड़ी चुनौती है। गांधीजी, मेरा विश्वास है कि आप ही ऐसे व्यक्ति हैं जिसमें श्रद्धा और दूरदर्शिता दोनों हैं; इसलिए मैंने आपको ये बातें लिखी हैं।